३३२ संसकाव्य वागबाद खंट नाद सढ़ में, किस किस बोलाहै। पहाण को भार कही उठावत, एक सारे का चोला। घट-पद के जोग सिखसक्योंकर गजपद तोला। आनंबधन प्रभुगु नाथ मिलो तुम, मिट जाय मनका झोला है। अलोक भिन्न लोक का लोकार से बाजी-प्रपंच से सिंथ मेला==प्रेम का समुद्र उमड रहा है । बागवाद-=वाणी का विलास है खटनाद ==छः प्रकार के शब्द : सर्दी में =:सबमें, सर्वत्र । पहाण:पाषाणपत्थर । कही= किस प्रकार से एक . . . चोला-=केवल एक तार का ही बना हुआ शरीर। बपदपद=भ्रमर के चरण में सिरीखल ==सदृश, बराबरी बा तुलना में । झोलारचंचलता, बेचैनी । शनिवेचनीयता (७) निसानो कहा बताऊँ रे, तेसे बचन अगोचर हद । रूपी कहूँ तो कछनाहीं रे, है से बँधे अरूप । रूपारूपी जो कहूँ ग्यारे, ऐसे न सिद्ध अनूप। सिद्ध सरूपी जो कहूँ रे, बंधन मोक्ष बिचपुर। ने घटे संसारी दसर प्यारे, पुन्य पाप अवतार। सिंह सनातम जो कहें रे, उपजे विणसे कण। उपजे विणहै जो कहें प्यार, नित्य अबाधित गौन ? संबगी सबनय धणी, माने सब पर वान् । नयादी पल्मोग्रही प्यार, कर लाई ठान । अनुबगोचर वस्तुकोरे, जणवो यह ईलाज। कहन सुमन को कछ, ह , मानेंशधन महज बचन अगोचर - अनिर्वचनीय 1 रूपारूपी . . .अनप==साकारनिरकार बोनों कहें तो यह विचित्र बात संभव नहीं दीखती। सिद्ध . . . विचार- स्वरूप बाला करने पर बंधमोक्ष कई प्रश्न रह जाता है । नयवादी = शानी। पस्लोग्रही =ऊपरऊपर की ही बातें करने बाले। जाणो . ..
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