पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३४६

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मध्ययु से (पूर्वार्द्ध) ३ ३३ ईज मस्बानुभूति ही साथम है। आत्मनिरूपण। (८) अबशू नाम हसारा राडेसोई परम सहारस चार्ल्स । नाह हम पुरुष नहीं हम नारीबरन न भांति हमारी। जाति न पांति में साधन साधक, ना हम लघु नह भारी। न्ना हम साते ना हम सीरना हम दोर्ज न छोठा। ना हम भाई न हम संगिनीसा त हम बाप न धोटा। न हम अनसा ना हम सबदा, ना हम तनकी धरणी। ना हम भेख भेखर नाहीं, ना हम करता करणी। ना हम हसन ना हम परसन, रसन गंध कछु नाहों । आनंघन चेतनमय सूरति, सेवक जन बलि जाहों । बरन=बर्ग । अंति =भेद। छोटा पुत्र धरणी त्ति । इष्टद्व निरंजन (६) अब मेरे पति गति देश निरंजन है। भटक कहां कहा सिर पट, कहा कहाँ जनरंजन। जनइगन ग न लगायूं, चाहू न चितवन अंजन। संजन धट अंतर परमातमसकल दुरितभयभजन । एह काम-वि एह कामघटएही सुधारस- जन । आनंदधन प्रभु घद वन -हरि, क्राम्-मतंगगजोंजन है। संजन=सब्जनसंव। कामगवि कामधेनु : मंजम =मार्जरस्नन् । भीषजनजी ( दादूपंथी ) भीषजनकी शेखावाटी के फतेहपुर नगर के निवासी थे और जाति के सहाश्राह्मण । उनके जन्म संवत् वा मृत्यु संवत् का पता नहीं चलता, किन्तु इनकी प्रसिद्ध रचना ‘सचेंगी बाबनी’ के निमणिकाल न ः 2६८३ से अनुमान होता है कि इनके जीवन-काल का अधिकांश