पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३६४

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मध्ययुग पूर्वार्द्ध) ३५१ जलूस में करि रहिजमिटि न सरन को मानु ॥ रुति सिंह नान्क फब्रिज, रषि लेहु भगवानि ११२है। एक भगति भगवान, जिह पानी के स्राहि मन । जैसे सूकर चुआंधन, नानक मानो ताहि तन १३। तीरथ बरत अरु दान करि, सनमें धरे ग सान है। नानक निरफल जात तिहजिड ह्यूचर असनानु 41१४। सिरु कंपिड पग डगमगे, मैर जोति से होन । कहु नामक इह विधि भईतऊ न हरिरस लीन 1१५। संग सषा सभ तजि यहए, कोट न निबहिड साथ है। कह नानक इह विपन), वे एक रघनाथ ।१६। जिहि... मीन = जिस प्रकार मछली सदा जल में रह कर ही जीती है उसी प्रकार दुम भो उनमें लीन हो । मैं . . ,श्रान् ि=जो न तो कभी किसी प्रकार के भय का अनुभव करता है और न किसी अन्य को ही किसी प्रकार का भय पहुंचाता है । ठगडर=ठगा हुआ, भौचक्का सा । इजही =योंही । आउधजीवन की अवधि अउरभ... उघार दूसरों को भी जरासंरणसे मुक्त कर देता है । फधिड==बंघन में पड़ गया हूं। दुभति सिज =अपनी पूर्णता के कारण कुंवर असनातु कुजर श्रथात् हाथी जिस प्रकार पानी से नहा कर निकलने पर अपने शरीर पर धूल जाल कर ज्यों का त्यों बन जाता है उसी प्रकार सब कुछ करते हुए भी, केवल एक गर्व के कारण अपनी भी दशा सुधर नहीं पाती है ट्रक न=एकमात्र आश्रय दा सहरा । संत मलूकदास मंद मलूकदास का जन्म वैशाख बदी ५ पर है० १६३१ को इलाहाबाद जिले के कड़ा सास्क गांव में हुआ था ।इनके पूर्वज वत्री जाति के कक्कड़ थे और इनका प्यार का नम मल्लू' था । सल्लू अपने बचपन