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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३६९

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३५६ संतकल्प , अवसर प¥ तो पब व बोले, तहूँ न होई भारी। घन सतगुरू यह जुगत बताईतिनकी में बलिहारी\३। सूखे पड़े तो कछ डर नही, ना गहिरे का संसा। उलटि जाय तो बार न बां, याका अजब तमासा।१४। कहृत मलू क जो बिन सर चै, सो यह रूप बखाते। या नैया के अजब कथाकोइ बिरला केवट जा १५। कड़िया =करिया, पलवर । लहासि=लहासी, नॉब बांधने को मोटी रस्सी। गुन=, नाब खींचने को रस्सी । हाजत=प्रॉबश्यकताजरूरत। सिद्धि (८) अब मैं अनुभव पदह समाना ॥टेका। सब देवन को भमें लाना, अदिगति हाथ बिकाना 1१। पहिला पद है देवी देवा, टूजा नेम अधारा। तोले पद में सब जग बंध, चौथा अपरम्पारा ४२ ।। सुन महल में सह ल हमारा, निर४न सेज बिछाई। चेला गुरु दोउ सैन करत हैं, बड़ी असाइस पाई1३। एक कहै चल लीर , (एक) कुछ ढ़ार बतायें। परम जोति के देखें तो अब कंछ, नजर न पाये ।४१। आवागमन का संशय छूटा, काटी जम की फांसी। कह सलूक में यह जानि, मित्र कियो अबिनासो ५। अबिगति =अविगत अश त, परमात्मा। सैन=शयन। असाइस आसाइश, चेन, आराम। उपदेश (९) राई न कोर्ज , हरि गर्व प्रहा। महि ते रावन गया, पाया दुख भारी 1१॥ जन खुदी रघुनाथ के, मन नाहि सुहाती। जाके जिय अभिमान है, ताकी तोरत छाती।२।