पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मध्यप उत्तर ) ४१७ गनीमन गा=आततायियों को नष्ट कर देता है। देत न हार== देने से महीं चूकता। ऐसेही ऐस=योंही। सुबंसजोवन जीओ = जीना। जकीत। बढ़नी =झाडू । कुतबार = कतवार, कूड़ा । चौपाई गुरु घर जन्म तुम्हारे होय । पिछले जाति बरन सब खोय ॥ चार बरन के एको भाई। धरम खालसा पदवी पाई। हिन्दू सुरक से प्राहि निश्रा। fसह मजब अब तुमने धारा है। राखहु कच्छकेस, किरपान। सिंह नाम को यही निशान॥ खालसा =विशुद्धबा खालसा घमैं । सिह मजब=fसंहों का समुदाय। साखी आशा भई अकाल की, तभी चलायो पंथ। सब सिक्खन को हुक्म है, गुरू मानियां ग्रंथ 1१t गुरू ग्रंथ जी । मानियढ़प्रक्ट शुओं की देह। जाका हिरदा शुद्ध है, खोज शब्द में लेह ॥२ा। संत बुल्लेशाह संत बुल्लेशाह के विषय में पहले प्रसिद्ध था कि वे बलख शहर के बादशाह थे और मियां मीर से भेंट करके फकीर हो गए थे । इसी प्रकार कुछ लोगों का यह भी कहना था कि ये अपने जन्मस्थान कुस्तृ तुनियां से आकर . इनायत शाह के मुरीद बने थे। परंतु इवरकी खोजों के अनुसार, पता चलता है कि उनका जन्म भारत में ही, लाहोर जिले के पंडोल गांव में, सं० १७३७ में हुआ था और वे पहले साबू दर्शनीनाथ के सत्संग में रहे और इनायत शाह के संपर्क में आ गए। ये आमरण ब्रह्मचारी बने रह गए औरकुसूर नामक स्थान में निवास करते हुए, सदा अपनी साधना में लीन रहे । इनका देहांत भी कुसूर २७