पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४३७

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४२४ संतकश नहीं नाब नह व , फिरत फिरत दिन ऐली । पाँच पचीस तीन घट भीतरकठिन कलुष जिम मैली है।१। गुरु परताप साध को संगति, नॉन गगन चढि शैली । कहें गुलाल राम भयो मेला, जन्म सुफल तब और ।२॥ गैलीलमार्ग । ऐली=आ गया । कठिन . . . कैली = मन में हाईवक कष्ट हुआँ । कैली=किया। (७) अवधू निर्मल ज्ञान विचारो। ब्रह्य स्वरूप अखंडित पूरनचौथे पद सो न्यथा टेका। ना बह उपजे न वार वह बिनसंना भरमै चौरासी । है सतगुरु सत पुरुष अकेला, अजर अमरचैबिनांसी ।।१। ना वाके बाप नहीं बाके माता, वाके मोह न सया । ना बाके भोग जोग वाके गांहो, ना कहीं जाय न आया ।२। अद्भुत रूप अपार बिराजे सदा रहे भर पूरा । कहें गुलाल सोई जन जा, जाहि मिले गुरु पूरा है।३। चौथपद=परम पद में । मयों (८) संतो कठिन अपबल नारी । सब ही घरलहि भोग कियो है, अजहूं कन्या क्वारी ।वेक। जननी ढंके सब जग पाला, बहु विधि दूध पियाई । सुन्दर रूप सरूप सलोना, जय होइ जग खाई 1१। मोह जाल सों सबहि, बायो, जद तक हैं सनधारी । काल सरूप प्रगट है नारेइन कहें चलहु बिचारी1२ शान ध्यान सब ही हरि लोरहो, साहु न श्रा सँभारी । कहे गुलाल फोक कोउ उबर, सत गुरु को बलिहारी है ३। अपरबलपूर्व । बरलहि विवाह संबंध करके। जोय =स्त्रो ।