४३६ सत-। सत समरथ में रात्रि मन, करिय जगत को काम। जगजीबन यह मंत्र है, सदा सुःख बिसराम ५४१ जोयरा जीव वा संस। तंत=बराबर से रुता आदि में, समान। सुःखविसराम =ख में शांतिमय जीवन व्यतीत करता । संत दीन दरवेश दीन दरवेश पाटन वा पालनपुर राज्य के किसी गांव के रहने वाले एक साधारण स्रोहार थे और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में क्रमशः मिस्त्रो का काम करने लग गए थे जहां से संयोगवश गोला लगने से बाँह कट जाने के कारण, नौकरी से निकाल दिये गए थे। एक बाँद के दोन दरवेश फिर घर छोड़कर साधुओं में भ्रमण करने लगे और अंत में, उन्होंने किसी बावा बालानाथ से दीक्षा ग्रहण कर ली 1 उन्होंने कई हिंदू तीर्षों में भी क्षण किया था और सूफ़ियों तथा वेदांतियों के साथ सत्संग किया था । परंतु अपने नाथपंथी . गुरु के आदेशानुसार उन्होंने अपने सिद्धांत स्वतंत्र रूप से ही स्थिर किये और अंत करते रहे । उनका समय विक्रम तक उन्हींका प्रचार की अठारहवीं शताब्दी से लेकर उन्नीसवीं के प्रथम चरण तक समझा जाता है और प्रसिद्ध है कि वे अंत में, काशी में मरे थे । दीन दरश की कुंडलियां प्रसिद्ध हैं जिनमें सरल स्वतंत्र जीवन, विश्वमपरोपकार, ईश्वरभक्ति, आदि के भाव पाये जाते हैं । उनकी भाषा पर पछांहीपन का प्रभाव अधिक पाया जाता है ठौर उनकी बर्धनशैली सच्ची अनुभूति पर आश्रित जान पड़ती है । कुॉडलिया हिंदू कहें तो हम बड़ेमुसलमान कहें हम्म। एक नूर दो फाड़ है, कुष ज्यादा कुछ कम ।
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