पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४६०

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मध्ययुख (उत्तराई) ४४७ है तथा इन्हें धुनिया म मानकर सानजो पिता एवं मीगां बाई माता का पुत्र बतलाया है । इन्हें वे लोग ‘रामस्नेही पंथ ' का एक प्रवर्तक भी कहते हैं, किंतु इन बातों के लिए पुष्ट प्रमाणों की कमी है । पद परमात्मा (१) अवदि अनादि मेरा सांई टेका। दूध्द न शुध्ट है अगम अगोचर । यह सब साया उनकी आई ।१। जो बनसाली सींचे पूलसहुई पिटे डाल फल फूल १२। जो नरपति को गिरह लाई, लेमा सकल सहज हो अब १३। जो कोई कर भान भझासे, तगे निसतारा सहुहि दागे ।।४। गरुड़ पख जो घर में लादे, सर्ष जाति रहने नह पाब ५५। बरिया पुभिरे एकहि रनरुक राम साढ़े सब काम ।६। दे दि . . .है =म दीख सकता है न पकड़ा जा सकता है। सेना =रिचारक है और =किरण। । वहीं (२) आदि अनंत में है राम । उन बिल और सकल बेकाम ।। कहा जपं तेशा खेद पुरा। जिन हैं सकल जगत झरमाना ।२ कहा करू मेरी अनुम बान । जिनमें तेरी दृद्धि भूलानी 1३। कहा कर्फ ये मान बड़ई । राम बिना सबख्ही दुखदाई १४। कहा कई तेरा सांख व जोण। राम बिना सब बंधन रोग ।।५! । कहा करे दिन का सुक्ल ' राम बिना बेवा सब दुख ।६। दरिया कह राम गुरु मुखिया । हरि बिन्दु दुखी राम संग सुविधाएं 1७। । देव-देश । उपद (२) रान बिन भव करम नहू टेक साध संण औौ ।म भजन बिन, काल निरंतर लूटे है११