पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५३४

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आधुनिक युग । ५२१ बाख़ुद-स्वयं । मेरesचढ़ई । कुलाब=जोर। रिकाथा =पदस्था है। लासकान=बिना अकादन ! (२) लहना है सतनाम का जो चाहै सो लेय है। जो चाहें सो लेय जायगी छूट राई। तुमका सुविही यार गांव जब दहिने लई । ताश कहा वर मोट भर बांध सिताबी । लूट में देरी करे ताईंह की होय खराबी है। बहुरि न ऐसा दाब नहीं फिर सानुष होसा। क्या ता तू ठाढ़ हाथ से जाता सोना॥ पलट उतन भयां सर दोस जिन य। लहना है सतनाम का जो चाहे सो लेय 1२। लह—उधार । लूट-=सुभीता। ई=ससाप्त १ लाई=आ ण है। सिताबी =टपट। उन=त र्ण, पार। (३) एक भक्ति में जान और झूठ सब बात। और झूठ सब बात कर हठजोग अनारी। अह्म दोष वो लय काया को राखे जारी है। प्रान करंआयाम कोई फिर मुद्रा सार्थ। धोती नेत कई कई लै स्वासा बांधे । उनमनि लावे ध्यान कई चौरासो आासन के कोई साखी संबद कोई तप कुस डासन । । पलटू सब परपंच है क) सो फिर पछतात। एक भक्ति में जनों और झूठ सब बात 11 ३है। जारोटबला करकष्ट देकर 1 प्रान करं अायाम=प्राणायाम । करता है । मुड़ा, नेतो, धोती, उनमुनी हठयोग को विविध साधनाएं।