सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

असैनिक युग लोक बेद ना सुनझे अपनी कहां । अरे हां, पलटू ए अजित सिर बर्फ सरन रहूंगा ।१! टोष टोप रस आान मक्खी संभु लइया । इक ले गया निवारि सवें पइयां ॥ 'मोक्रो भर बैराग अंधेहिको निषि कैद । अरे हां, पलटू साया बुरी बलाय तजा से परचुिके ।२५ कौन सकस करि जाय नाहि कछु खबर है । बीच में सबके देई बड़ा बह जवर है ? हरि घर मेरो रूप कर सब काम है । अरे हां, पलटू बीच सुहै इक नाम मोर बदनाम है १३। । रथ उरध के बीच बसा इक सहर है ? बीच सहर में ब।ण बाग में लहर है । मध्य अकास में छठे फुहारा पथनम का। अरे हां, पसंदू अंदर घसि के देख तमासा भवन कह 1४। पलटें ऐसी प्रीति कg, क्यों मजीठ को रंग है क टू क कपड़ा उड़, रंग न छोड़े संग 1१। लगा जिकिर का बाद है, फिजिर मई छयकार । पुरके पुरज उईि गय, पलटू जीति हमार है।२। बखतर पहिरे प्रेम का, घोड़ा है गुरु शान है 'पलटू सुरति कमान लें, जीति चले मैदान 11३ । आठ पह लागी रहे, भंजन तेल की धार ॥ पलटू ऐसे दास को, कोड न पावै ार 1४। जैसे कार्ड में अगिल है, फू ल में है क्यों बास है। इरिजन में हरि रहत है, ऐसे सटू बास 1५