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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५६९

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५५६ संत कब्य करते है । हुजूर महाराज साहेब की भाषा स्पष्ट तथा सरल है और उनकी पुनर्वित्त में भी नीरसता प्रायः नहीं जान पड़ती । पद अपनी बात (१) सतगुरु पूरे परम उदारा । दया दृष्टि से मोहि निहारा 1१। दू देश से चल कर आाया। दरशन कर मन अति हखाया है?' सुन सुन बट्टन प्रीत हिय जगी । चरन सदन में सूरत पागी 1३ है। करम भरम संशय सब भगा । राधास्वामी चरन बढ़ा अनुरागा ।४है सुरत शब्द भारग दरसा । बेिरह अंग ले ताहि कमाथा 11५ कुल कुटुम्ब का मोह छ ाना । सत संगत में मन ठहराना ।६। सुमिरन अंजन रसीला लागा । सोता मन धन सुन कर जागा ५४७tt मेहर हुई स्पूत नभ पर दौड़ी। त्रिकुटी जा गुर धरमन जोड़ी ।।८. अचरज लीला देखरे सुन में । मुरली धुन अब पड़ी भवन में 1932। पहुंची फिर सतगुरु दरबारा । अलख अगम को जय निारा 41१०। वहां से भी फिर अधर सिधारी । मिल गए राधास्वामी पुरुष नपारी।।११। वहां जय कर भारत गई। पूरन दया दासमें पाई 1१२। . कमाया -==श्रम किया, अभ्यास किया। लगा =जान पड़ने लगा। । छुत=सूरत । जोड़ी =जुड़ गई । अ धर -घूमय-स्थान । (२) जगत में खोज किया बहु. भांत । न पाई मैने घट में शांत १। गौर कर देखा जग का हाल । ऐसे सब कर भस्म के जाल है। फैल रहे जग में मते अनेक । धार रहे थोथे इष्ट की टेक १३!। भेद कोइ घर का न जाने । भरम बस सोख नहीं माने ५४५ मान में खप रहे पण्डित भेख । कर्म में बंध रहे मुल्ला शेख १५t: भाग मेरा जानाअजब निबान। मित्रा में राधास्वामी संगत अम ६