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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/९६

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भूमिका


(२) दरपन में सब देखिए, महिने कूं कछु नाहि।
त्यं रज्जब साधू जुबे, माया काया माहिं॥४॥[]

(३) रज्जब बूंद समंद की, कित सरकै कहूं जाय।
साझा सकल समंद सों, त्युं आतम राम समाय॥२६॥[]

(४) जलचर जाणै जलचरा, शशि देख्या जल माहिं।
तैसे रज्जब साधु गति, मूरख समझे नाहिं॥१९॥[]

(५) जैसे छाया कूप को, फिरि घिरि निकसै नाहिं।
जन रज्जब यूं राखिये, मन मनसा हरि माहिं॥९७॥[]

(६) श्वान सबद सुणि श्वान का, बिन देखै भुसि देय।
त्यूं रज्जब साखी सबद, जे देखि निरखि नहि लेय॥७६॥[]

(७) ज्यू सुन्दरि सर न्हावतों, अभरण घरै उतारि।
त्यूं रज्जब रमि राम जल, स्वाँग सरीरहि डालि॥३०॥[]

(८) अलल बसे आकास में, नीची सुरत निवास।
ऐसे साधू जगत में, सुरत सिखर पिउ पास॥३५॥[]

(९) सूरा सम्मुख समर में घायल होत निसंक।
यों साधू संसार में, जग के सहै कलंक॥७॥[]

संत रज्जबजी दृष्टांतों एवं उदाहरणों के प्रयोग में बड़े ही कुशल थे और कहा गया है कि उनके सामने ये सदा मानों हाथ जोड़े खड़े रहते थे।


  1. 'रज्जब को वाणी', पृष्ठ २० (सा॰ ९), पृष्ठ ८१ (सा॰ ४), पृष्ठ १३८ (सा॰ २६), पृष्ठ १६८ (सा॰ १९), पृष्ठ १८१ (सा॰ ९७), पृष्ठ २६६ (सा॰ ७६) और पृष्ठ २९४ (प॰ ३०)।
  2. 'रज्जब को वाणी', पृष्ठ २० (सा॰ ९), पृष्ठ ८१ (सा॰ ४), पृष्ठ १३८ (सा॰ २६), पृष्ठ १६८ (सा॰ १९), पृष्ठ १८१ (सा॰ ९७), पृष्ठ २६६ (सा॰ ७६) और पृष्ठ २९४ (प॰ ३०)।
  3. 'रज्जब को वाणी', पृष्ठ २० (सा॰ ९), पृष्ठ ८१ (सा॰ ४), पृष्ठ १३८ (सा॰ २६), पृष्ठ १६८ (सा॰ १९), पृष्ठ १८१ (सा॰ ९७), पृष्ठ २६६ (सा॰ ७६) और पृष्ठ २९४ (प॰ ३०)।
  4. 'रज्जब को वाणी', पृष्ठ २० (सा॰ ९), पृष्ठ ८१ (सा॰ ४), पृष्ठ १३८ (सा॰ २६), पृष्ठ १६८ (सा॰ १९), पृष्ठ १८१ (सा॰ ९७), पृष्ठ २६६ (सा॰ ७६) और पृष्ठ २९४ (प॰ ३०)।
  5. 'रज्जब को वाणी', पृष्ठ २० (सा॰ ९), पृष्ठ ८१ (सा॰ ४), पृष्ठ १३८ (सा॰ २६), पृष्ठ १६८ (सा॰ १९), पृष्ठ १८१ (सा॰ ९७), पृष्ठ २६६ (सा॰ ७६) और पृष्ठ २९४ (प॰ ३०)।
  6. 'रज्जब को वाणी', पृष्ठ २० (सा॰ ९), पृष्ठ ८१ (सा॰ ४), पृष्ठ १३८ (सा॰ २६), पृष्ठ १६८ (सा॰ १९), पृष्ठ १८१ (सा॰ ९७), पृष्ठ २६६ (सा॰ ७६) और पृष्ठ २९४ (प॰ ३०)।
  7. 'दरिया साहब (मारवाड़) की बानी', पृष्ठ ४ (सा॰ ३५)।
  8. 'दयाबाई की बानी', पृष्ठ ५ (सा॰ ७)।