पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१०१

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पहला खण्ड] पाण्डवों का सबसे बड़ा गजा होना तब कुरुओं में श्रेष्ठ भीष्म सभा के बीच में खड़े होकर युधिष्ठिर से बोले :- हे भारत ! इस समय गजों का यथायोग्य सत्कार करने का समय आ गया है। प्राचार्य, ऋत्विक, सम्बन्धी, स्नातक, गजा और स्नेही जन यही छः प्रकार के लोग पूजा के योग्य हैं। इसलिए इनमें से हर एक की उचित पूजा करो। किन्तु आज की सभा में जिसे सबसे बड़ा समझना उसी को पहले अर्घ देकर मत्कार करना। इसके उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा :- पितामह । आप ही कहिए. इनमें से आप किमको सवम बड़ा, अतएव पहले अर्घ पाने के योग्य, समझते हैं। भीष्म ने सोच कर कहा :- इस यज्ञ के सम्बन्ध में कृष्ण न तुम्हारा बड़ा उपकार किया है। बुद्धि, बल और पराक्रम में भी वे सबसे श्रेष्ठ हैं। इससे उन्हीं को हम सबसे पहले अर्घ पाने के योग्य समझते हैं। इसके बाद भीष्म की आज्ञा पाकर, संहदेव ने गति के अनुसार कृष्ण को पहले अर्घ दिया । कृष्ण ने उस अर्घ को शास्त्रीनि से ग्रहण किया । कृष्ण की यह पूजा महाबली शिशुपाल को बहुत बुरी लगी। वह क्रोध से अधीर हो उठा। भरी सभा में वह कृष्ण का और पाण्डवों का तिरस्कार करने लगा। वह बोला :- हे पाण्डव ! इन सब गजों के उपस्थित रहने कृष्ण किस तरह पूजा के योग्य हुए ? तुम अभी बालक हो; इन बातों को नहीं जानते । पर भीष्म ने क्या समझ कर तुमको ऐसी सलाह दी ? कृष्ण ती गजा ही नहीं; और यदि यादववंश को तुम इतना श्रेष्ठ समझते हो तो वृद्ध वसुदेव के बदले उनके पुत्र ने क्यों अर्थ पाया ? यह हम जानते हैं कि कृष्ण मदा ही से तुम्हारी हाँ में हाँ मिलानेवाले हैं; वे तुम्हें प्रसन्न रखने की सदा ही चेष्टा किया करते हैं। पर आत्मीय समझ कर यदि उनका सम्मान किया गया है तो तुम्हारे परम आत्मीय और उपकारकर्ता राजा द्रपद की उपेक्षा क्यों की गई। उन्हें तुम कैसे भूल गये ? यदि कृष्ण को आचार्य या ऋत्विक ममझा है तो द्रोणाचार्य और महामान्य महर्पि द्वैपायन मे कोई भी बढ़ कर नहीं। पुरुषों में उत्तम भीष्म, सब शास्त्रों के जाननेवाले अश्वत्थामा, गजों के गजा दुयोधन, वीरों में श्रेष्ठ का को छोड़ कर कृष्ण किस गुण से अर्घ पाने के अधिकारी हुए ? हे कृष्ण ! डरपोक और नासमझ होने से पागडव लोग ऐसा कर सकते हैं। पर तुमने क्या समझ कर पहले अर्घ लिया ? मालिक की नजर छिपा कर कुत्ता यदि धेले भर भी घी चाट जाता है तो वह अपनी तारीफ़ कहता और करता है, वाह आज खूब घी खाया। यही हाल तुम्हाग है। इस पूजा के तुम कदापि अधिकारी न थे। वह देवयोग से तुम्हें प्राप्त हो गई है । इस पर तुम्हें इतना घमण्ड ! सच पूछो तो गजों का इससे कुछ भी अपमान नहीं हुआ; उलटी तुम्हारी ही भद्द हुई है। यह कह कर शिशुपाल आसन से उठा और अन्य राजेों को उकसाने लगा। महापराक्रमी चेदिराज का क्षोभ और दूसरे राजे का क्रोध देख कर युधिष्ठिर बड़े व्याकुल हुए । वे खुद ही शिशुपाल के पास गये और मीठी मीठी बातें करके उसे समझाने लगे :-- हे महीपाल ! आपने जो कुछ कहा, सा समझ कर नहीं कहा । इस प्रकार कहना आपको शाभा नहीं देता । आपकी बातें अधर्म से भरी हुई हैं, कड़वी हैं, और व्यर्थ हैं। देखिए, आपसे अधिक उम्रवाले राजों ने कृष्ण की पूजा अनुचित नहीं समझी । हे चेदिराज ! कृष्ण को अच्छी तरह पहिचानिए । कौरवों ने इनका जैसा परिचय पाया है वैसा आपने नहीं पाया। इन्होंने बार बार क्षत्रियों को युद्ध में हा कर उन्हें छोड़ दिया है। क्षत्रियों के लिए यह सच्ची तारीफ की बान है। इम सभा में ऐसा कोई फा०११