पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१११

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पहला खण्ड पाण्डवों का राज्यहरणे द्रौपदी ने कहा :--हं सृतनन्दन ! तुम सभा में जाकर युधिष्ठिर से पूछो कि उन्होंने पहल हमें दाँव पर रक्खा था या अपने को ? द्रौपदी के आज्ञानुसार सूतपुत्र ने भरी सभा में मुह लटकाये बैठे हुए युधिष्ठिर से द्रौपदी का प्रश्न पूछा । पर उस समय युधिष्ठिर अपने होश में न थे। इससे उसकी बात का कुछ भी उत्तर न मिला। दुर्योधन ने कहा :-हे सूतकुमार ! द्रौपदी को जो कुछ पूछना हो यहाँ आकर पूछ।। तब सृतपुत्र फिर द्रौपदी के पास गया और दुःख से भरे हुए वचन बोला :-हं गजपुत्रि ! मदमत्त पापी दुर्योधन बार बार तुम्हे बुलाता है। द्रौपदी ने कहा :-हे सूतनन्दन ! हमार भाग्य ही में ऐसा लिखा था। संसार में धर्म ही सबसे बड़ा है। इसलिए सभ्य लोगों से पूछ आओ कि इस समय धर्म के अनुसार हमें क्या करना चाहिए। वे लोग जो कुछ कहेंगे हम वही करेंगी। सूतपुत्र ने, लौट कर, पहले की तरह, भरी सभा में द्रौपदी की बात कह सुनाई। सभासदा ने दुर्योधन का आग्रह देख कर उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ भी कहने का साहस न किया। द्रौपदी से भी कोई अधर्म की बात कहने की उनकी इच्छा न हुई। इस कारण उन लोगों ने मुँह लटका लिया और चुपचाप बैठे रहे। ___ यह देख कर कि द्रौपदी को सभा में लाने के लिए दुर्योधन नं दृढ़ संकल्प कर लिया है युधिष्ठिर ने छिपे छिपे दूत के द्वारा द्रौपदी से कहला भेजा कि वह सभा में चली आवे और ससुर के सामने अपना दुख गेवे।। सूतपुत्र समझ गया कि अब विपद आई। इससे दुर्योधन की कुछ भी परवा न करके वह सभासदों का उत्तेजित करने के लिए फिर बाला :- मैं द्रौपदी से जाकर क्या कहूँ ? यह सुन क्रुद्ध होकर दुर्योधन ने कहा :-- हे दुःशासन ! यह सूत का लड़का बिलकुल ही कम समझ है । मालूम होता है कि यह भीमसेन से डरता है । इससे तुम खुद ही जाकर द्रौपदी को ले आओ। शत्रु लोग ब-बस हो रहे है । वे तम्हारा क्या कर सकते हैं ? आज्ञा पाते ही दुरात्मा दुःशासन जल्दी से द्रौपदी के घर जाकर बोला :- हे द्रौपदी ! तुम जुए में जीत ली गई हो। इसलिए लज्जा छाड़ कर सभा में चली। द्रौपदी दुःशासन की लाल लाल आँखें देख कर बहुत डरी । उसने कहा, बहुत सी स्त्रियों के बीच में बैठी हुई गान्धारी की शरण जाना चाहिए। इससे वह बड़ी शीघ्रता से गान्धारी के यहाँ जान को दौड़ी। निर्लज्ज दुःशासन ने क्रोध से गरजते हुए द्रौपदी का पीछा किया और उसके लम्ब लम्बे बाल दौड़ कर पकड़ लिये। हवा में हिलते हुए केले के पत्त की तरह काँप कर द्रौपदी बहुत नम्रता से बोली :-- हे दुःशासन ! हम इस समय एकवस्त्रा हैं। ऐसी हालत में हमें सभा में ले जाना उचित नहीं। पर दुःशासन, उसकी बात सुनी अनसुनी करके, बोला :- चाहे एकवस्त्रा हो चाहे बिना वस्त्र की हो, तुम हमारी जीती हुई दामी हो। इस लिए तुम्हं हमारी आज्ञापालन करना ही होगा । यह कह कर दुष्ट दुःशासन, द्रौपदी के बाल जोर से खींचते हुए, महा अनाथ की तरह उसे सभा में ले आया।