मचित्र महाभारत [पहला खण्ड तब दुःख में व्याकुल कुन्ती से और न रहा गया। वे उनके पीछे दौड़ी और कुछ दूर जाकर दखा कि उनके पुत्र वस्त्र और गहनों की जगह मृगचर्म धारण किये और लज्जा से सिर झुकाये चले जा रहे हैं। पुत्रवत्मला कुन्ती उनका इस दशा में देख कर उनके पास पहुँची और लिपट कर विलाप करन लगी :-- हाय, समय का फेर ! जो भूल से भी धर्म-भ्रष्ट नहीं हुए, जिनकं आचग्गा मंमार भर से श्रेष्ठ है वहीं ऐसी भयङ्कर विपद में पड़े ! इस समय किस अपराधी समझे ? हमारं ही मान्य के दाप स मा हुआ है । हा पुत्रगण ! इस हतभागिनी के गर्भ में पैदा होकर तुम इनन गुणवान हुए; ना भी तम्हें दु:मह दु:ग्व भागना पड़ा । तुम्हारे पिता का धन्य है जो उन्होंने तुम्हारे इस अमद्य क्लेश का न देखा। हाय ! हमारं जीने की लालमा का धिक्कार है ! मालूम होता है कि विधाना हमारे मग्न का समय निश्चय करना भूल गये ; नहीं ना यह दुख:दायी दृश्य देख कर भी हम कैम जीती रहती। इस तरह विलाप करनी हुई कुन्ती का पाण्डवों ने पैर छुआ और वन का चल दिया। उस समय विदुर ने शाकातग कुन्ती का तरह तरह से समझा बुझा का धीरज दिया और धीरे धीरे अन्तःपुर में पहुँचा दिया। धृतराष्ट्र मन ही मन चिन्ता करते हुए चुपचाप गजसभा में बैठे रहे। पाण्डवों के चले जाने पर विदुर का वहाँ सहमा आ गया देख उन्होंने लज्जा से काँपते हुए पूछा :- हे विदुर ! पाण्डव लोग किस भाव स वन का गये हैं ? विदुर बोल :-महाराज ! मबकं आग धर्मगज अपना मुंह ढक कर और सिर झुका कर गये है, नहीं तो उनकी दृष्टि के पुण्य प्रभाव से यह पापराज्य जल जाना। लम्बी भुजाआंवाल भीमसन अपने विशाल भुजदण्डों को देखन हुए गये है। मानां वे मन में यह कह रहे थे कि किसी समय इन्हीं के द्वारा धृतगष्ट्र के पुत्रों का विनाश करेंगे। धनुर्धारी अर्जुन धूल उड़ाते हुए गये हैं । हाय ! एक दिन व इमी धूल के कणों क इतने बाण बरसा कर कौग्वा को व्याकुल करेंगे। सबकं पीछे बड़ी बड़ी आँखांवाली, मुकुमारी द्रौपदी बाल खोल और मुंह छिपाये रोती हुई गई है। उसके ढंग से मालूम होता था कि वह उस दिन की गह देख रही है जिस दिन अपन पनियों की क्रोधाग्नि में पड़ कर जल हुए कौरवों की त्रियों की भी उसी की तरह दीन दशा होगी। इस समय गजमान्य बृढा सारथि सजय धृतराष्ट्र को दुःखी और ठंडी साँमें भरते देख कर बाला :- ___ महागज ! जब आपने सब वान जान कर भी अपने हितचिन्नकों की मलाह न मानी नब श्राप इस समय क्यों दुग्वी होते हैं ? और, आप ही के अपराध से जब भयङ्कर युद्ध की आग प्रज्वलित होकर चारों दिशाओं को जलावंगी तब भी आपकं पछताने से क्या होगा ? अब राना, धाना और दुःख करना व्यर्थ है। ८-पाण्डवा का वनवास जुए का हाल सुन कर नगरनिवासी लोग क्रोध से जल उठे और खुल्लमखुल्ला धृतराष्ट्र, भीष्म और विदुर को बार-बार दाषी ठहरा कर कहने लगे :- . जब शकुनि, कर्ण और दुःशासन के उपदेश में दुर्योधन राज्य करते हैं तब हमें अपनी भलाई की आशा नहीं । इमलिए, आओ, धर्मराज युधिष्ठिर और महात्मा पाण्डव लोग जहाँ रहेंगे वहीं जाकर हम भी रहें।
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