पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/११९

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पहला खण्ड ] पाण्डवों का वनवाम वे लोग युधिष्ठिर से बोले :-- हे धर्मगज ! इम अन्यायी कुरुगज्य में हम और नहीं रहना चाहतं । हम आपकं परम मित्र और भक्त हैं। यह सुन कर कि आप लोगों के माथ अधर्म किया गया है, हम बड़े दुःग्विन और भयभीत हुए हैं। इसलिए हम लोगों को आप न छाडिए: अपने साथ लेने चलिए। युधिष्ठिर ने कहा :-आप लोग हमें इतना गुगणवान समझते हैं, इसलिए हम धन्य हैं किन्तु जब आपने हम पर म्नेह और दया प्रकट की है तब हमारी बान भी अापका माननी चाहिए। दग्विए, यहाँ कुरुओं में निरपराध बढ़े लोग और शोकातुर माना रह गई हैं। यदि आप लोग यहाँ न रहेंगे तो उन्हें कौन देखेगा। यदि इनकी भलाई और दख-भाल आप करेंग ना मचमुच ही हम बड़े प्रसन्न होंगे । इमी का हम अपना सच्चा सत्कार समझेंगे। इससे हमें परम मन्तोप होगा। यह सुन कर नगरनिवामी अनेक प्रकार में विलाप करते हुए लौट गये। उनकं चले जाने पर पाण्डव लोग द्रौपदी के साथ रथ पर सवार होकर नगर के मुख्य फाटक से हस्तिनापुर में निकले और उत्तर की ओर चले । स्त्रियों-समेत इन्द्रसेन आदि चौदह नौकर भी उनकं माथ चले। संध्या तक बराबर चल कर वे गङ्गाजी के किनारे बरगद के एक बड़े वृक्ष के नीचे उतरं । उनके साथ बहुत से भिक्षक ब्राह्मगा भी थे। सबन बड़े कष्ट में सिर्फ जल पीकर वह गत बिताई। मबंग होने पर जब पाण्डव लोग चलने लगे तब ब्राह्मण भी उनके पीछे चलने को तैयार हुए। यह दग्व कर युधिष्ठिर कहने लगे :- हे विप्रगण ! हमारा गजपाट और धन-लक्ष्मी मब कुछ छिन गया; हमारे पास अब कुछ नहीं है। ऐसी दशा में हम वन जा रहे हैं। हिंसक जन्तुओं से पूर्ण जंगल के महाभयकर स्थानों में आप लोगों को बड़ा कष्ट होगा। इसलिए आप हमारे माथ न चलिए। ब्राह्मणों ने कहा :-अनुरागी ब्राह्मणों पर देवता भी दया दिग्वान है। इसलिए आप हमाग उन्माह भंग न कीजिए - हमें अपने माथ चलने दीजिए। युधिष्ठिर ने कहा :- हं द्विजवर ! ब्राह्मणों पर हमार्ग यथेट भक्ति है। इस निगश्रय दशा में हम लाचार हैं। हमारे भाई शिकार और फलमूल लाकर खाने-पीने की बहुत सी चीज़ इकट्ठा कर सकते हैं। पर वे इस समय प्यारी पनी के क्लेशों को दंग्य कर दुग्बी है। इसलिए हम उनको कोई मेहनत का काम करने को नहीं कह सकते। ब्राह्मण लोग बोल :-महागज ! हमारे ग्बान-पीने की चिन्ता न कीजिए। हम खुद अन्न लाकर अपना जीवन-निर्वाह करेंगे और कथा-कहानी कह कर आप लोगों का मन बहलायेंगे । युधिष्ठिर ने कहा :--इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि आप लोगों के पास रहने से हमाग कष्ट बहुत कुछ हलका हो जायगा। किन्त आप लोगों के सूद अन्न लाने का देश हम कैसे देख सकेंगे ? हाय, धृतराष्ट्र के पापी पुत्रों को धिक्कार है ! यह कह कर युधिष्ठिर शाक से विह्वल होकर ज़मीन पर बैठ गये। ब्राह्मणों ने उनका धीरज दकर बहुत विलाप किया । पुरोहित धौम्य कुछ देर सोच कर कहने लगे :--- भगवान सूर्य ही सांसारिक जीवों को अन्न देनवाले है। इसलिए है महागज ! यदि आप मृर्घ्य देव की उपासना करें तो निश्चय ही सिद्धि प्राप्त करेंगे और उनके प्रमाद में ब्राह्मणां का भग्गा- पोषण कर सकेंगे। इसके बाद धौम्य के सिखलाये हुए महाम्तात्र के द्वारा युधिष्ठिर ने मयं भगवान् की यथाविधि पूजा की । तब वे प्रसन्न हुए। जलती हुई आग की तरह प्रकाशमान देह धारण कर वे युधिष्ठिर के सामने प्रकट हुए और बोले :-