पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१२४

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१०२ मचित्र महाभारत [पहला खण्ड बाँध कर और ग्थ पर मवार होकर पाण्डवों के माथ युद्ध करके उनका म दुर्बल अवस्था में मार डालें । गमा होने से सदा के लिए विवाद मिट जायगा । मब लोगों ने कर्ण की इम युक्ति की प्रशंसा की और वे अलग अलग रथ पर सवार होकर कुरुजाङ्गल देश की ओर रवाना हुए। राम्न में महर्षि द्वैपायन ने उन्हें दग्व कर और यह ममम कर कि वे कहाँ और किम लिए जा रहे हैं, उनको रोका और धृतराष्ट्र के पास लिवा लाकर वाल :- हे महाबुद्धिमान धृतराष्ट्र ! तुम्हारं पुत्रों ने छल करकं पाण्डवों को वनवाम दिया है, यह बात हमें अच्छी नहीं लगी। मालूम होता है, तुम्हाग वड़ा पुत्र बड़ा दुर्मति है। राज्य के लाभ से क्यों वह पाण्डवों का मदा मताया करता है ? उसे रोको, नहीं तो वनवासी पागडवों का अनिष्ट करने जाकर वह खुद ही माग जायगा। भीष्म ! तुम या विदुर क्या उसका किसी तरह अपने वश में नहीं रख सकत ? धृतराष्ट्र ने कहा :-हे महर्षे! जुआ खेलने में हमारी और हमारे बन्धु-बान्धवों की सम्मनि न थी। भीष्म, विदुर. गान्धारी आदि ने इस बात को बार बार गेका था। पर पुत्र-स्नेह के कारण दयोधन से हमारा बस न चल सका । व्यासदेव ने कहा :-यह सच है कि दुनिया में पुत्र से अधिक प्यारी और काई चीज नहीं । हम भी तुम्हें पुत्र ही की तरह म्नह करते हैं; इमीलिए कहते हैं कि यदि तुम अपने पुत्रों का भला चाहो तो दुर्योधन का रोका; उसे शान्त और क्षमाशील बनाने की चेष्टा करो। पाण्डवों के वनवास की खबर द्वारका पहुँची। उस सुन कर यादव लोग बड़े दुखी हुए। पाण्डवों को देखने के लिए वे काम्यक वन की ओर चले । धृतराष्ट्र के पुत्रों की निन्दा, और अब क्या करना चाहिए इस बात का विचार, करते हुए वे लोग शीघ्र ही वहाँ पहुँच गये । जब सब लोग युधिष्ठिर को घेर कर बैठ गये तब कृष्ण कहने लगे :- हे धर्मराज ! पृथ्वी अवश्य ही दुर्योधन आदि का रक्त पियेगी। इन दुष्टों को हग कर हम तुम्हें शीघ्र ही राजा बनावेंगे। द्रौपदी इस तरह अपने मन की बात सुननं ही बहुत दिनों के छिपे हुए भाव को प्रकट करके बोली :- हे कृष्ण ! मैं धृष्टद्युम्न की बहन, पाण्डवों की स्त्री और तुम्हारी प्यारी मखी होकर क्या भग सभा में दुष्ट दुःशासन के द्वारा खींच जान के योग्य हूँ ? हाय ! पाण्डवों, पाञ्चालों और यादवों के जीविन रहते मेरे साथ दामियों का मा व्यवहार किया गया। भीमसेन के बाहबल को और अर्जन के गाण्डीव धनुप को धिक्कार है। क्योंकि, यह देख कर भी कि एक तुच्छ आदमी मंग अपमान कर रहा है, उन्होंने कुछ परवा न की। हे मधुसूदन ! पाण्डव लोग शरण में आये हुए को कभी नहीं छोड़ते । किन्तु उस समय शरण माँगने पर भी किसी ने मेरी रक्षा न की। मधुरभाषिणी द्रौपदी अपने कोमल कोमल हाथों से मुँह छिपाकर इमी तरह दुग्वभरी बातें कह कह कर रोने लगी। परन्तु इतने पर भी जब कृष्ण कुछ न बोल तब आँस पोंछ कर पानवर से द्रौपदी फिग बोली :- मै समझ गई कि इस ममय मंग कोई नहीं: पिना नहीं, भाई नहीं, पति नहीं, पुत्र नहीं, रहे सह तुम भी मुझे छोड़ बैठे ! तब कृष्ण ने द्रौपदी का धीरज देने के लिए कहा :- हे सुन्दरी ! जिसने तुम्हाग अपमान किया है उसकी स्त्रियाँ, लड़ाई के मैदान में, अर्जुन के वारणों से अपने स्वामी को छिन्न-भिन्न और म्यून में लथ-पथ देख कर, तुमसे अधिक दुखी होंगी। जहाँ