________________
दूसरा खण्ड पृष्ठ-संख्या १-शान्ति की चेष्टा .... सन्धि का प्रस्ताव लेकर सजय का गमन-पाण्डवों के शिविर में शञ्जय का पहुँचनापाण्डवों का प्रस्ताव-सञ्जय का लौटना-विदुर की सलाह--कौरवों की सभा में सब बातों का विचार---धृतराष्ट्र की शान्तिस्थापन करने की इच्छा-दुर्योधन का विरोध और कर्ण की आत्मश्लाघा-भीष्म के तिरस्कार-वाक्यों के कारण कर्ण का अस्त्र-त्याग-कृष्ण के साथ पाण्डवों की सलाह--शान्ति रखने की इच्छा से कृष्ण का दूत बनना- भीम की उक्ति-अन्य पाण्डवों की उक्ति-द्रौपदी की उत्तेजना--कृष्ण की हस्तिनापुर-यात्रा-हस्तिनापुर में कृष्ण के आदर-सत्कार की तैयारी-डुर्याधन की सलाह-हस्तिनापुर में कृष्ण--कुन्ती के यहाँ कृष्ण का गमन --कृष्णदुर्योधन-संवाद-भीष्म और द्रोण के द्वारा कृष्ण की बात का समर्थन--दुर्योधन का न मानना और अशिष्टतापूर्वक सभा छोड़ कर चला जाना--गान्धारी और दुर्योधन का संवाद-दुर्योधन का कपट-विचार और सत्यभङ्ग-पाण्डवों के प्रति कुन्ती का उपदेश-कृष्ण और कर्ण का संवादकृष्ण का लौट आना-कुन्ती और कर्ण का संवाद--पाण्डवों की रक्षा के विषय में कण की प्रतिज्ञा। २-युद्ध की तैयारी पाण्डवों की युद्ध-विषयक चिन्ता-सना-नायकों का चुनाव-युधिष्ठिर की आयोजना-- युद्ध-धर्म-पालन करने के विषय में नियम-दूत बना कर उलूक का भंजा जाना-दुर्योधन का भेजा हुश्रा कटु सन्देश--पाण्डवों का उत्तर--दोनों पक्षों का युद्ध के लिए तैयार होना-अर्जुन का युधिष्ठिर को धीरज देना-दोनों पक्षों की व्यूह-रचना-युद्ध के बीच में कृष्ण और अर्जुन की स्थिति-- अर्जुन का विषाद--कृष्ण का उपदेश--युद्ध के लिए अजुन का राजी होना-व्यास से सञ्जय का वर पाना। ३-युद्ध का प्रारम्भ युद्व के प्रारम्भ में युधिष्ठिर का शिष्टाचार-दुर्योधन के पक्ष में कर्ण की दृढ़ता --युयुत्सु का पाण्डवों के पक्ष में आना-युद्ध का आरम्भ-विराट के पुत्र का पतन -युद्ध के पहले दिन का अन्त-दूसरे दिन का प्रारम्भ-भीमसेन का अद्भुत युद्ध-कौरव-सेना का पराङ्मुख होना-- भीष्म पर दुर्योधन का दोषारोप--युद्ध का सातवाँ दिन-धृतराष्ट्र के पुत्रों का भीम-द्वारा मारा जाना-धृतराष्ट्र का शोक-युद्ध का आठवाँ दिन-अर्जुन के पुत्र इरावान् की मृत्यु-- राक्षसों का युद्ध -भीष्म और अजुन का अद्भुत युद्ध--दुर्योधन का भीम पर कलङ्कारोपण--भीष्म का भीषण युद्ध-अजुन का मृदु युद्ध और कृष्ण का क्रोध-युधिष्ठिर की चिन्ता-कृष्ण के उपदेश से