पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१४२

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१२० सचित्र महाभारत [पहला खराड __ दुर्योधन ने यह मलाह मान ली। सब लोग आनन्द से एक दुसरं का हाथ पकड़ कर जोर जोर हँसने लगे। इसके बाद वे लोग धृतराष्ट्र के पास गये और उनसे कुशल-समाचार पूर्छ । धृतराष्ट्र ने भी उनकी कुशल आदि पूछी । नब पहले से सिखाया हुआ एक ग्वाला आ कर बोला :- महागज ! गाय और बछड़ों की उम्र और रंग का लेखा रखने और उनके गिनने का समय आ गया है। तब कर्ण और शकुनि कहने लगे :- है कौरवगज ! इन ग्वालों की बस्ती बड़ी रमणीक है और वहाँ शिकार खेलने का भी अच्छा सुभीता है । इमलिए आज्ञा हो ना हम लोग दुर्योधन को लेकर वहाँ शिकार खेलने जायँ । उसी के साथ साथ गायां की देख-भाल का जरूरी काम भी पूरा हो सकता है। धृतराष्ट्र बोल :-गायों के आँकने का काम ज़रूरी है; शिकार खेलने में भी काई दोष नहीं है । किन्तु हमने सुना है कि अहीर-टोले के पास ही पाण्डव लोग रहते हैं। हम डरते है कि कहीं उनसे तुम लोगों का झगड़ा न हो जाय । अर्जुन ने दिव्य अस्त्रों की उत्तम शिक्षा पाई है। उमस वे तुम्हाग बहुत कुछ अनिष्ट कर सकते हैं। इसके मिवा तुम लोग गिनती में बहुत अधिक हो। इसमें जो कहीं तुम्ही उन्हें हरा दो तो भी बड़े अधर्म की बात होगी। इसलिए उबर जाने का काम नहीं। शकुनि बाल :-महाराज पाण्डवों में युधिष्ठिर श्रेष्ठ हैं । वे बड़े धर्मात्मा हैं। वनवास का ममय, पूग होने के पहले वे हमसं काई झगड़ा न करेंगे । हम भी शिकार खेलने और गायों की देख-भाल करने के लिए वहाँ जाते हैं । पाण्डवों से मिलने की हमें कोई जरूरत नहीं। ___महाराज धृतराष्ट्र इस बात का खण्डन न कर सके। लाचार ब-मन उन्होंने जाने की सम्मति दी। उनकी आज्ञा पात ही दुर्योधन, कर्ण और शकुनि ने दुःशासन और अन्य कितने ही कौरवों को भी साथ चलने को कहा । तरह तरह के ग्न और गहनों से भूषित स्त्रियों को भी उन्हान साथ लिया । अच्छ अच्छे सुनहले ग्थां पर सवार होकर बड़ी धूमधाम से वे लोग चले। शिकार खेलने के अभिलाषी बहुत से नगरनिवासी भी अपनी अपनी सवारियों पर उनके पीछे पीछे चल । पहले तो अहीर-टोल में सबक लिए अलग अलग घर बनाय गये। वहाँ रह कर वे बछड़ों के गिनन, चुनन और आँकने का काम धीरे धीरे करने लगे। ग्वालों और ग्वालिनियां ने तरह तरह के नाच-गान आदि के द्वाग दुर्योधन का प्रसन्न करके बहुत अन्न-वस्त्र प्राप्त किया। जब यह काम हो गया तब सब लोग शिकार खेलने के लिए निकले और हिरन, भैंस, सुअर, भालू आदि का पीछा करने लगे। राजा दुर्योधन जंगली हाथी आदि तरह तरह के जानवरों को मारत हुए धीरे धीरे द्वैतवन के सगेवर के पास पहुँचे । दुर्योधन को यह जगह बहुत ही रमणीय मालूम हुई । पाण्डवों को अपना ऐश्वर्य भी उन्हें दिखाना था। इससे उन्होंने नौकरों को आज्ञा दी कि सरोवर के एक तरफ़ एक बहुत ही अच्छा खेल-घर बनाया जाय । इस समय अप्सराओं के साथ विहार करने के इरादे से गन्धर्वगज चित्रसेन न वह मगंवर घेर रखा था। जब दुर्योधन के नौकर वहाँ पहुँच तब गन्धर्वगज के द्वारपालों ने उन्हें रोका। ___ उन्होंने लौट कर दुर्योधन से सब हाल कहा। दुर्योधन को यह बात बुरी लगी। वे बाल :- शीघ्र ही जाकर गन्धवों को निकाल दो।