पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१६९

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१४५ पहला खण्ड] अज्ञात वास कीचक के भाई-बन्धुओं के पराक्रम को विराटराज अच्छी तरह जानते थे। इसलिए उन्हें इस बात का साहस न हुआ कि उन लोगों को ऐसा करने से रोकें । अन्त को कीचक के आत्मीय जनों ने द्रौपदी को बाँध कर मुर्दे के ऊपर रख लिया और श्मशान की ओर चले। प्राण जाने के भय से अत्यन्त व्याकुल होकर द्रौपदी चिल्लाती हुई चली :- सूत-पुत्र मुझे श्मशान लिये जाते हैं; अब गन्धर्व लोग मेरी रक्षा करें। द्रौपदी का यह विलाप सुनते ही भीमसेन पलैंग से उठ बैठे और वेश बदल डाला। फिर सदर दरवाजे को छोड़ एक और जगह से दीवार फांद कर बाहर निकल आये और जल्दी-जल्दी श्मशान की ओर दौड़े। श्मशान के पास पहुँचते ही उन्होंने एक पेड़ उखाड़ लिया और साक्षात् यमराज की तरह सूतपुत्रों पर आक्रमण किया। भीम की अद्भुत शक्ति को देख कर उन लोगों ने उनको गन्धर्व ही समझा इसलिए द्रौपदी को छोड़ कर नगर की तरफ भागे। पर क्रुद्ध भीमसेन ने पेड़ की मार से उन सबको मार कर कल की। फिर उन्होंने डबडबाई हुई आँखों से प्रियतमा का बन्धन खोल कर कहा :- जो लोग बिना अपराव के तुम्हें कष्ट देंगे उनकी यही दशा होगी । अब किसी बात का डर नहीं है। तुम नगर को जाव । हम और रास्ते से राजा के महल में जायेंगे । इधर जो लोग कीचक का अग्निसंस्कार देखने आये थे वे कीचक के भाई-बन्धुओं को मारा गया देख शीत्र ही राजा के पास पहुँचे और सब हाल कह सुनाया । गन्धर्वो के इस उपद्रव से राजा बहुत डरे और गनी के पास जाकर बोले :- प्रिये ! तुम्हारी सैरिन्ध्री बड़ी रूपवती है और उसके रक्षक गन्धर्व लोग भी बड़े पराक्रमी हैं। इससे उसे घर में रखने से हमें अपने राज्य की रक्षा करना मुश्किल हो जायगा । इसलिए उसे निकाल दो। भीमसेन के विकट कामां को देख कर लोग सचमुच ही इतने डर गये थे कि जब द्रौपदी श्मशान से नगर की ओर आने लगी नब जिसकी ओर वह देखती वही अपने प्राण लेकर भागता। इस तरह द्रौपदी राजमहल में पहुँची। जब वह सोने के कमरे के पास से निकली तब विगटगज की कन्या और उसकी सखियाँ अर्जुन से नाच सीख रही थीं । निरपराध सैरिन्ध्री को श्मशान से कुशलतापूर्वक लौट आई देख सबको बड़ी प्रसन्नता हुई। अर्जुन के साथ वे सब उसके पास आकर कहने लगी :- सैरिन्ध्री ! बड़े सौभाग्य की बात है कि तुम संकट से बच कर फिर लौट आई। जिन लोगों ने तुम्हें कष्ट दिया था वे भी मारे गये। अर्जुन ने कहा :-हे सैरिन्ध्री ! यह सुनने की हमारी बड़ी इच्छा है कि तुम विपद से किस तरह छुटीं और वे पापी लोग कैसे मारे गये । द्रौपदी ने कहा :-हे कल्याणी बृहन्नले ! तुम्हें कन्याओं के साथ आनन्दपूर्वक रहने से काम । जो क्लेश सैरिन्ध्री को भोगने पड़ते हैं वे तुम्हें तो भोगने पड़ते नहीं । इससे तुम उसे अत्यन्त दुखी देख कर भी हँस हँस कर बातें कहती हो। अर्जुन ने कहा :-सैरिन्ध्री ! बृहन्नला तुम्हारे दुख से बहुत दुखी है। तुम उसे निग पशु न समझो । सच तो यह है कि कोई किसी के मन की बात कभी नहीं जान सकता। इसी लिए तुम हमारे मन की बात नहीं समझ सकती ।। ___ अर्जुन से इस प्रकार बातचीत करके द्रौपदी गनी के पास गई । उसे देखते ही सुदेष्णा ने गजा की आज्ञा सुना कर कहा :- फा०१९