पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१८५

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पहला खण्ड] पाण्डवों का प्रकट होना और सलाह करना १६१ यह सुन कर विराटराज प्रसन्नतापूर्वक युधिष्ठिर के पास बैठे और उनका यथोचित सम्मान किया। फिर अपनी सेना, खज़ाना और नगर-समेत समस्त राज्य देकर उनकी पूजा की । तदनन्तर अपने भाग्य की बड़ाई करते हुए उन्होंने अन्य पाण्डवों के माथे सूघे और उनका आलिङ्गन किया। इसके बाद उन्होंने युधिष्ठिर से कहा :- हे धर्मराज ! बड़े सौभाग्य की बात है जो आप लोग वनवास और अज्ञात वास समाप्त करके प्रतिज्ञा से छूट गये। दुरात्मा कौरवों को अज्ञात वास के समय आपकी कोई खबर न मिली, यह बहुत ही अच्छा हुआ। इस समय हमारे राज्य में जितनी सम्पत्ति है वह सब आप ही की है। महाबली अर्जुन हमारी कन्या के उपयुक्त पात्र हैं। इसलिए वे उत्तरा का पाणिग्रहण करें। . अर्जुन की इच्छा जानने के लिए युधिष्ठिर ने उनकी तरफ़ देखा। उनका अभिप्राय जान कर अर्जुन ने विराटराज से कहा :- ___हे राजन् ! इसमें सन्देह नहीं कि पाण्डव और मत्स्य लोगों में परस्पर सम्बन्ध होना बहुत अच्छा है। किन्तु आपके अन्त:पुर में हम राजकुमारी के गुरु की तरह रहते रहे हैं। वह भी हमें पिता की तरह मानती रही हैं। इसलिए यदि आप उचित समझिए तो सुभद्रा के गर्भ से उत्पन्न हुए हमारे पुत्र अभिमन्यु के साथ उत्तरा का विवाह कर दीजिए। अर्जुन की बात से प्रसन्न होकर विराट ने कहा :- हे अर्जुन ! तुम बड़े धर्मात्मा हो । उत्तरा के साथ विवाह करने से इनकार करके तुमने बहुत ही उचित काम किया । अब बहुत जल्द अभिमन्यु के साथ उत्तरा के विवाह की तैयारी करना चाहिए। तदनन्तर विवाह में आने का न्योता देने के लिए पहले तो कृष्ण के पास फिर अन्य मित्रों के राज्य में दूत भेजे गये। यह खबर फैलते ही कि पाण्डव लोग प्रतिज्ञा-पालन करके छूट गये हैं उनके मित्र राजा लोग उनकी सहायता के लिए सेना ले लेकर झुण्ड के झुण्ड आने लगे। ___पहले युधिष्ठिर के मित्र काशिराज और शिविराज एक एक अक्षौहिणी सेना लेकर विराट-नगर में आये। फिर महाबली द्रपद और धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और द्रौपदी के पाँचों पुत्रों के साथ, एक अक्षौहिणी सेना लेकर उपस्थित हुए। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का सा वर पाने से विराटराज बड़े प्रसन्न थे। इसलिए देश विदेश से आये हुए राजों की अगवानी वे बड़े आदर से करने लगे। - इसके बाद द्वारका से कृष्ण, बलदेव, सात्यकि आदि यादव-वीर अभिमन्यु को लेकर आये । पाण्डवों के नौकर इन्द्रसेन आदि भी रथ आदि लेकर आये। पाण्डवों के लिए राजोचित धन और वस्त्रों की ज़रूरत समझ कर कृष्ण सब चीजें अपने साथ लाये और पाण्डवों को दी। इसके बाद विधि के अनुसार विवाह का कार्य प्रारम्भ हुआ। शङ्ख, भेरी, ढोल आदि बाजे बजने लगे। बहुत सा मांस, मछली और अनेक प्रकार की मदिरा आने लगी। गानेवाले, कहानी कहने- वाले, नट, बन्दीगण, स्तुति-पाठ करनेवाले और भाट महमानों का मन बहलाने लगे। सुदेष्णा आदि परम रूपवती स्त्रियाँ सजी हुई उत्तरा को लेकर विवाह-मण्डप में आई। पर अत्यन्त सुन्दरी द्रौपदी के सामने सबका रङ्ग फीका जान पड़ता था। कृष्ण की सहायता से विराट और युधिष्ठिर ने विवाह-सम्बन्धी सब काम धीरे धीरे पूर्ण किये और विवाह के बाद आये हुए ब्राह्मणों को बहुत सा धन देकर सन्तुष्ट किया। विवाह समाप्त होने पर पाण्डवों ने अपने भाई-बन्धुओं से सलाह करने का विचार किया। यह निश्चय करने के लिए कि अब क्या करना चाहिए सब लोग विराट के सभा-भवन में इकट्ठे हुए। फा०२१