१८८ सचित्र महाभारत [दूसरा सर कुन्ती ने कहा :--बेटा ! युधिष्ठिर से कहना :- हे पुत्र ! प्रजापालन से जो तुमने बहुत सा धर्म कमाया है वह अब नष्ट हो रहा है। इसलिए तुम्हें क्षत्रिय-धर्म को अब स्वीकार करना चाहिए । तुम्हारी बुद्धि, दिन रात धर्म-चिन्ता में लगी रहने से कर्म-चिन्ता को भूल सी गई है । इससे तुम्हें सावधान हो जाना चाहिए। हे केशव ! भीमसेन और अर्जुन से कहना :- बेटा! क्षत्रिय की कन्या जिस लिए गर्भ-धारण करती है, उसका स्मरण रखना । इस समय उसके सफल करने का समय आ गया है। और, कल्याणी द्रुपद-नन्दिनी से कहना :- हे द्रौपदी ! हे यशस्विनी ! हे पतिव्रते ! तुमने हमारे पुत्रों के कारण इतना क्लेश सह कर भी जो कोई बात अनुचित नहीं की सो तुम्हारे योग्य ही हुआ है। तुमसे ऐसी ही आशा थी। हे माधव ! सबसे हमारा आशीर्वाद और कुशल-समाचार कहना । अब तुम जाव । ईश्वर तुम्हें कुशलपूर्वक ले जाय । इसके बाद कुन्ती को प्रणाम करके कृष्ण बाहर निकल आये। बाहर आकर कर्ण से उन्होंने कहा कि आपसे एक जरूरी काम है। यह कह कर उन्होंने कर्ण को अपने साथ रथ पर बिठा लिया और सात्यकि तथा नौकर-चाकरों के साथ शहर से प्रस्थान कर दिया । शहर के बाहर एक एकान्त स्थान में पहुँचने पर कृष्ण कर्ण से कहने लगे :- हे कर्ण। तुम्हारा मेल-जोल हमेशा ही वेद जाननेवालों के साथ रहा है। उन लोगों की कृपा से तुमने बहुत सी अच्छी अच्छी बातें जानी हैं। कोई भी तत्त्व बात ऐसी नहीं जिसका विचार तुमने न किया हो। इससे तुम इस बात को अच्छी तरह जानते हो कि जो मनुष्य जिस स्त्री के साथ विवाह करता है उसकी कन्या-अवस्था में उत्पन्न हुए पुत्र का भी वह शास्त्र-रीति से पिता होता है। तुम अपना जन्म-वृत्तान्त जानते ही हो। कुन्ती का विवाह होने के पहले ही सूर्य देवता के वर से तुम उनकी कोख से पैदा हुए थे। इसलिए तुम महात्मा पाण्डु के पुत्र हुए। इस समय तुम्ही पाण्डवों में सबसे जेठे हो। अतएव, श्राश्रो, आज तुम हमारे साथ चलो हम पाण्डवों को यह सब कच्चा हाल सुनावें । उन्हें यह बात मालूम होते ही, कि तुम उनके जेठे भाई हो, वे सारा अधिकार तत्काल तुम्हीं को दे देंगे। भीम तुम्हारे मस्तक के ऊपर सफेद छत्र धारण करेंगे और अर्जुन तुम्हारे रथ के घोड़ों की रास हाथ में लेकर सारथि का काम करेंगे। जितने पाण्डव हैं, जितने यादव हैं, और जितने पाञ्चाल देश के रहनेवाले हैं, सभी तुम्हारी वन्दना करेंगे। पुरोहित धौम्य अग्निहोत्र करके विधिपूर्वक तुम्हारा ही राज्याभिषेक करेंगे, और पाण्डवों की तरह द्रौपदी तुम्हारी भी पत्नी होगी। इससे हे महाबाहु ! आज ही हमारे साथ चलो और अपने भाइयों के बीच बैठ कर राज्य-शासन का सूत्र अपने हाथ में लेकर कुन्ती के आनन्द को बढ़ानो। कर्ण ने उत्तर दिया :- हे यादव-श्रेष्ठ कृष्ण ! हम जानते हैं किं कुन्ती की कन्या-अवस्था में जन्म लेने के कारण शास्त्र के अनुसार हम महात्मा पाण्डु ही के पुत्र हुए। परन्तु हे जनार्दन ! हमारे सुख-दुःख की कुछ भी परवा न करके हमारे पैदा होते ही कुन्नी ने हमें फेंक दिया। उस समय सूत-जाति के अधिरथ नामक सारथि ने हमें देखा। उनको हम पर दया आई। इससे हमें उठा कर उन्होंने अपनी स्त्री राधा को दिया और कहा कि इसका अच्छी तरह पालन-पोषण करो। हे कृष्ण ! हमारी माता-रूपिणी राधा के स्तनों में स्नेह के मारे उसी क्षण दूध निकल आया। उस दिन से राधा और अधिरथ ने हमारा लालन-पालन किया। युवा होने पर हमने सूत-जाति की कन्या से विवाह किया। उससे हमारे पुत्र, पौत्रादि हुए हैं।
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