पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२५०

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२२० सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड धृतराष्ट्र ने कहा :-हमारी ही मूर्खता के कारण पितृतुल्य भीष्म की आज यह दशा हुई । इससे अधिक दुःख की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है ? हमारा हृदय सचमुच ही पत्थर का है, नहीं तो ऐसी शोचनीय घटना को सुन कर भी वह फट क्यों न गया ? ऋषियों ने क्षत्रियों के धर्म को बड़ा ही दुःखदायी बनाया है। उसे उन्होंने ऐसा दारुण कर दिया है कि उसके पालन के लिए पितामह ऐसे महात्मा का वध करा कर हम लोग राज्य करने की इच्छा करते हैं, और उधर पाण्डव भी उनका संहार करके राज्य पाने की आशा रखते हैं । बीच धारा में नाव डूब जाने से पार जाने की इच्छा रखनेवाले की जो दशा होती है, भीष्म की मृत्यु से हमारे पुत्रों की ठीक वही दशा हुई है । हाय ! भीष्म के बिना इस समय दुर्योधन अब किसके आसरे रहेगे ? हे सञ्जय ! इस युद्र में हमारे पुत्रों की क्या दशा होगी, यह सोच कर पहले ही से हमारा हृदय शोकाग्नि से जल रहा था। तुमने भीष्म की मृत्यु की खबर सुना कर उस आग में मानो घी डाल कर उसे और भी प्रज्वलित कर दिया। उस भीमका महायोद्वा भीष्म की मृत्यु-वार्ता सुन कर हमारे मुँह से अब बात नहीं निकलती। हमारी वाणी बन्द सी हो रही है। हममें और अधिक बोलने की शक्ति नहीं। इधर कुरु-सेनापति भीष्म के शर-शय्या में सो जाने पर कौरव लोग बे-तरह घबरा गये। कुछ देर तक एक दूसरे का मुँह देखते हुए सब लोग खड़े रह गये। यह किसी को न सूझा कि अब क्या करना चाहिए। अन्त में दुर्योधन की आज्ञा से दुःशासन, द्रोणाचार्य की सेना की तरफ दौड़ते हुए गये। उन्हें इस प्रकार जल्दी जल्दी जाते देख सैकड़ों योद्धा, यह जानने के लिए कि मामला क्या है, उन्हें चारों ओर से घेर कर उनके साथ साथ चले। द्रोण के पास पहुँच कर दुःशासन ने उनसे भीष्म के मरने की बात कही। इस महाअमङ्गल समाचार को सुनते ही द्रोणाचार्य एकाएक मूर्छित होकर रथ पर गिर पड़े। होश आने पर उन्होंने दूतद्वारा अपने सेना विभाग को तत्काल युद्ध बन्द करने के लिए आज्ञा दी। तब पाण्डवों ने भी शङ्खध्वनि करके उस दिन का युद्ध समाप्त किया। युद्ध बन्द होने पर दोनों दलों के सैनिक लोग अपने अपने कवच उतार कर और हथियार रख कर, भीष्म की शर-शय्या के पास आये और बड़े आदर से भीष्म को प्रणाम करके उन्हें चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गये । तब कुरु-पितामह ने कहा :-- हे महाशयो ! आपका स्वागत है। आपके दर्शनों से हमें बड़ा आनन्द हुआ। कुछ देर ठहर कर भीष्म फिर बोले :हे नरेश-वृन्द ! हमारे सिर के नीचे खाली है; इससे हमारे लिए एक तकिया ला दीजिए। राजों ने उसी क्षण कई कोमल कोमल बहुमूल्य तकिये ला दिये । परन्तु भीष्म ने उन्हें न लेकर अर्जुन की तरफ़ देखा और कहा : बेटा ! तुम्हीं हमें सिर के नीचे रखने योग्य कोई चीज़ दो। आँखों में आँसू भरे हुए अर्जुन ने पितामह के मन की बात जान ली। गाण्डीव उठा कर भीष्म के मस्तक के नीचे तीन बाण उन्होंने मारे । वे सिर और ज़मीन के बीच ठहर गये। उन्होंने तकिये का काम दिया । जैसी शर-शय्या थी, वैसा ही शरों का तकिया बन गया। भीष्म यही चाहते थे। ऐसा तकिया पाकर वे बहुत सन्तुष्ट हुए और अर्जुन को हृदय से आशीर्वाद दिया। ___ भीष्म बड़े ही दृढ़ स्वभाव के और धीर पुरुष थे। शस्त्रों के सैकड़ों घारों से उन्हें जो असह्य पीड़ा हो रही थी उसे जरा भी प्रकट न करके शान्त भाव से उन्होंने पीने के लिए पानी माँगा । सब लोग चारों ओर दौड़ पड़े। अनेक प्रकार की खाने पीने की सामग्री और ठंडा जल लाया गया। परन्तु इन