पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२५२

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२२२ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड बहुत विश्वासपात्र मार्ग से सुनी है कि तुम राधा के नहीं, कुन्ती के पुत्र हो। हम सच कहते हैं। हमने कभी तुमसे द्वेष नहीं किया। तुम पाण्डवों का विरोध करते थे; इसलिए, हम कभी कभी कठोर वचन कह कर तुम्हें राह पर लाने का यत्र करते थे। हम चाहते थे कि तुम्हें अपने स्वरूप का--अपने तेज का ज्ञान हो जाय । हम इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि तुम बड़े वीर और बड़े धर्मात्मा हो। पहले जो तुम पर हमारा क्रोध था वह आज बिलकुल जाता रहा । हे वीरशिरोमणि ! पौरुप और प्रयत्न की अपेक्षा भाग्य ही बलवान है। इससे और वृथा युद्ध करने से क्या लाभ ? तुम यदि अपने सहोदर भाई पाण्डवों के साथ मेल कर लोगे तो यह मारा वैर-भाव मिट जायगा, अतएव, हमारी इच्छा है कि हमारे प्राणों के खर्चही से इस युद्ध की समाप्ति हो जाय । कर्ण बोले :-हे पितामह ! आपने जो कुछ कहा उसमें कुछ भी सन्देह नहीं। सचमुच ही हम कुन्ती के पुत्र हैं। किन्तु कुन्ती ने पैदा होते ही हमें त्याग दिया। सूत अधिरथ ने हमें पड़ा देख दया करके बड़े प्रेम से हमारा लालन-पालन किया। इसके बाद दुर्योधन की कृपा से हम बड़े हुए। हमारे ही कारण इस विषम वैर की आग जली है। इससे आप हमें अर्जुन के साथ युद्ध करने की आज्ञा दीजिए । बीमार होकर मरना क्षत्रियों को कभी उचित नहीं । इसी से इन महापराक्रमी पाण्डवों के साथ युद्ध करने की हमने प्रतिज्ञा की है। तब भीष्म ने कहा : हे कर्ण ! यह दारुण वैर मेट दना यदि बिलकुल ही असम्भव हो तो हम आज्ञा देते हैं कि स्वर्ग-प्राप्ति की इच्छा से तुम अहंकार छोड़ कर युद्ध करो। हमने पहले ही से इस युद्ध को रोकने की बहुत कुछ चेष्टा की; पर हमारी सारी चेष्टायें व्यर्थ गई। भीष्म का उपदेश सुन चुकने पर कर्ण उनको प्रणाम करके दुर्योधन के पास गये । ४-युद्ध जारी शर-शय्या पर लेटे महात्मा भीष्म के दर्शन करके आँखों से आँसू बहाते हुए कर्ण कौरवों की सेना में पहुँचे। वहाँ उन्होंने कौरवों को बहुत तरह से आशा-भरोसा दिया। बहुत दिनों के बाद कर्ण को युद्ध के मैदान में रथ पर सवार देख दुर्योधन ने प्रसन्न होकर कहा : हे कर्ण ! भीष्म के मरने से हमारी सेना अनाथ हो गई थी। उसकी रक्षा का भार आज जो तुमने अपने ऊपर ले लिया है, इससे हम उसे फिर सनाथ समझते हैं । अब, इस समय, क्या करना चहिए, सो निश्चय करो। कर्ण ने कहा :-हे महाराज ! आप बड़े बुद्धिमान और चतुर हैं। इसलिए, आप ही को निश्चय करना चाहिए कि इस समय हम लोगों का कर्तव्य क्या है । सब बातों की देखभाल जितनी अच्छी तरह राजा कर सकता है उतनी अच्छी तरह और लोग नहीं कर सकते । आपके अधीन जो नरेश हैं वे आपका उपदेश सुनने के लिए उत्सुक हो रहे हैं। दुर्योधन बोले :-हे कर्ण ! बल, विक्रम, शस्त्र-विद्या और उम्र, सभी बातों में श्रेष्ठ पितामह ने सेनापति होकर दस दिन तक हमारी रक्षा और शत्रुओं का नाश किया। जो काम किसी और से शायद ही हो सके ऐसे बड़े बड़े दुष्कर काम करके उन्होंने इस समय देवलोक का आसरा लिया है।