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पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२५४

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२२४ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड हे प्राचार्य्य ! युधिष्ठिर को मार डालना हमारे लिए अच्छा नहीं; उन्हें मारने से हमें सुभीता न होगा। उनका नाश होने से अर्जुन जरूर ही हम लोगों का नाश कर डालेंगे, इसमें सन्देह नहीं। किन्तु, युधिष्ठिर को अपने वश में कर लेने से उनके साथ फिर जुआ खेल कर हम अपना मतलब साध सकेंगे। ___ दुर्योधन के इस कुटिल अभिप्राय को जान कर द्रोणाचार्य मन ही मन उनसे बहुत अप्रसन्न हुए । उन्होंने दुर्योधन को वरदान तो दिया; पर युधिष्ठिर को बचने के लिए जगह रख छोड़ी। उन्होंने कहा :- हे राजन् ! यदि अर्जुन युधिष्ठिर की रक्षा करेंगे तो उन्हें पकड़ लेना हमारी शक्ति के बाहर की बात है । शस्त्र विद्या में हम अर्जुन के गुरु ज़रूर हैं; पर उन्होंने खुद शङ्कर से शस्त्र प्राप्त किये हैं। तथापि, यदि, किसी ढंग से अर्जुन को तुम दूसरी जगह हटा सको, और युधिष्ठिर यदि भाग न जाय, तो हम आपकी इच्छा पूर्ण करेंगे। ___ इसके बाद, युद्ध के ग्यारहवें दिन, सेनापति द्रोण ने सेना का व्यूह बना कर और दुर्योधन तथा दःशासन आदि कौरवों को साथ लेकर, युद्ध के मैदान की तरफ प्रस्थान किया। कृप, कृतवर्मा और दुःशासन आदि वीर द्रोण की रक्षा करने के लिए उनकी बाई तरफ नियत किये गये । जयद्रथ, कलिङ्ग- नरेश और धृतराष्ट्र के पुत्र उनकी दाहिनी तरफ़ रहे । मद्रनरेश आदि वीरों के साथ कर्ण और दुर्योधन आगे हुए। कर्ण सबके आगे गमन करने लगे। उनकी सिंह के चिह्नवाली, सूर्य के समान चमकीली, पताका कौरवों के सैनिकों का आनन्द बढ़ाती हुई फहराने लगी। तब कर्ण को देख कर कौरव लोग भीष्म का अभाव भूल गये । युधिष्ठिर ने भी कौरवों के व्यूह के जवाब में व्यूह बना कर अजुन को उसके द्वार पर नियत किया। दोनों दल आमने सामने होने पर जन्म के वैरी कर्ण और अर्जुन परस्पर एक दूसरे को देखने लगे। इसके अनन्तर, वन में आग जैसे पेड़ों को जलाती चली जाती है उसी तरह, चारों तरफ़ तेजी से घूमनेवाले सोने के रथ पर सवार द्रोण, युद्ध का प्रारम्भ करके, पाण्डवों की सेना का नाश करने लगे। बार बार गरजनेवाले मेघों से, हवा के झोकों के साथ, पत्थरों की वर्षा की तरह द्रोण के बाणों की वर्षा से पाण्डवों का दल व्याकुल हो उठा । यह देख कर बहुत से पाण्डव वीरों के साथ युधिष्ठिर दौड़ पड़े और द्रोण की बाणवर्षा को रोकने लगे। __उस समय महा घोर युद्ध होने लगा। शकुनि ने सामने आकर बड़े ही तेज़ बाणों से सहदेव पर आक्रमण किया। उधर द्रोणाचार्य द्रुपद के ऊपर टूट पड़े। सात्यकि कृतवर्मा के साथ और धृष्टकेतु कृपाचार्य के साथ युद्ध करने लगे। किन्तु शल्य को छोड़ कर भीमसेन का तेज कोई भी न सह सका। __अन्त को इन पिछले दोनों वीरों में गदा-युद्ध होने लगा। बड़े वेगवाले मतवाले हाथियों की तरह ये दोनों वीर गदा हाथ में ऊँची उठा कर एक दूसरे के ऊपर टूट पड़े। कुछ देर में वे चक्कर लगाते हुए मण्डलाकार घूमने लगे। फिर उन्होंने पैतड़ा बदल कर उन्हीं लोहे के डण्डे-रूपी गदाओं से परस्पर एक दूसरे पर आघात किया । थोड़ी देर तक इसी तरह भीषण युद्ध होता रहा। उन्होंने एक दूसरे पर ऐसी चोटें की कि दोनों एक ही साथ जमीन पर लोट पोट हो गये । किन्तु भीमसेन जमीन पर गिरने के साथ ही उठ बैठे । इतने में कौरव लोग शल्य को वहाँ से एक सुरक्षित स्थान में तुरन्त ही उठा ले गये। __तब लम्बी भुजाओंवाले भीमसेन ने गदा हाथ में लेकर कौरवों की सेना पर आक्रमण किया। पाण्डव लोग अपनी जीत से प्रसन्न होकर सिंहनाद करने और भीमसेन की सहायता करके कौरवों की