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२२६ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड अर्जुन ने कहा :-पाञ्चालवीर सत्यजित आज आपकी रक्षा करेंगे। यदि द्रोण उन्हें मार डाले तो तुम युद्ध के मैदान में किसी तरह न ठहरना । इसके अनन्तर युधिष्ठिर ने बड़े प्रेम से अर्जुन को हृदय से लगाया और त्रिगत्त लोगों के साथ युद्ध करने के लिये जाने की आज्ञा दी। अतुल वीर अर्जुन भूखे बाघ की तरह त्रिगर्तों की तरफ दौड़े। तब युधिष्ठिर को बिना अर्जुन के देख, उन्हें पकड़ने के लिए, द्रोणाचार्य की सेना मन में बहुत खुश होकर आगे बढ़ी। दोनों दलों के बीर बड़े वेग से एक दूसरे से भिड़ गये । इधर त्रिगत लोगों ने युद्ध के मैदान के बाहर एक चौरस जगह में खड़े होकर चक्र के आकार का एक व्यूह बनाया। जब उन्होंने देखा कि अर्जुन उनसे लड़ने आ रहे हैं तब वे मारे खुशी के उछलने, कूदने और शोर मचाने लगे। उन्हें इतना प्रसन्न देख अर्जुन ने कृष्ण से हँस कर कहा : हे वासुदेव ! मरने की इच्छा रखनेवाले इन त्रिंगत लोगों को तो देखो। रोने के बदले ये लोग • खुश हो रहे हैं । अथवा, रण में मरने से हमें स्वर्ग मिलेगा, यह समझ कर सचमुच ही ये लोग आनन्द मना रहे हैं। यह कह कर अर्जुन ने त्रिगर्तराज के सामने रथ खड़ा कराया और सोने के कामवाला अपना देवदत्त शङ्ख बड़े जोर से बजाया। तब त्रिगर्त लोग सब मिल कर एक ही साथ अर्जुन को ताक कर बाण मारने लगे। उनमें त्रिगलराज का एक भाई भी था। उसने यहाँ तक साहस किया कि अर्जुन के किरीट पर शस्त्र चलाया । अर्जुन ने तत्काल ही उसका सिर काट गिराया और सावन-भादों की वृष्टि की तरह बाण बरसा कर उसके सैनिकों का संहार प्रारम्भ किया। इस पर वे लोग बे-तरह डर गये और दुर्योधन की सेना में जा मिलने के इरादे से भागने का विचार करने लगे। यह देख कर त्रिगतराज को बड़ा क्रोध हुआ। वे पुकार कर कहने लगे : हे वीरो ! भागना मत । कौरवों के सामने ऐसी भयानक शपथ करके इस समय कौन मुँह लेकर तुम लोग उनके सामने जावगे। यह सुन कर सैनिक लोग उत्तेजित हो उठे-उन्हें फिर साहस आ गया। वे सब मिल कर फिर युद्ध के लिए तैयार हुए। अर्जुन उन लोगों को लौटते देख कृष्ण से कहने लगे : हे केशव ! जान पड़ता है कि शरीर में प्राण रहते ये लोग युद्ध का मैदान न छोड़ेंगे। इसलिए हमारे रथ को और पास ले चलो। आज तुम हमारे भुज-बल और गाण्डीव-माहात्म्य को अच्छी तरह देखोगे। तब कृष्ण ने रथ चलाने में बेहद कौशल दिखाया। कभी उन्होंने चक्र की तरह रथ को चक्कर दिया; कभी उसे आगे ले गये; केभी तत्काल ही पीछे लौटा लाये। इस तरह, कृष्ण ऐसी चतुराई से त्रिग लोगों की सेना में रथ चलाने लगे कि अर्जुन का उत्साह दूना हो गया। उन्होंने अनन्त शर बरसा कर सामने के सारे वीरों को यमपुरी भेज दिया। बाक़ी जो बचे उनको उन्होंने बड़ी ही बेदर्दी से मारना प्रारम्भ किया। अन्त में त्रिगर्त लोगों ने जीने की आशा छोड़ दी। सब एक जगह इकट्ठे हो गये और एक ही साथ अर्जुन पर बाणों की बौछार करने लगे । सैकड़ों, हज़ारों बाण अर्जुन पर एकबारगी गिरने लगे। उस बाण-वर्षा ने कृष्ण और अर्जुन को बिलकुल ही तोप दिया-यहाँ तक कि एक दूसरे को देखना असम्भव हो गया। यह दशा देख त्रिगत लोगों ने समझा कि कृष्ण और अर्जुन दोनों मारे गये। तब वे अपना अपना वस्त्र ऊँचा उठा कर हिलाने और कोलाहल मचाने लगे। कृष्ण के कितने ही घाव लगे; वे विकल हो उठे और अर्जुन से कहने लगे :