पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२५७

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दूसरा खण्ड ] युद्ध जारी २२७ हे अर्जुन ! अच्छी तरह तो हो ? तुम्हारे तो कोई घाव नहीं लगा ? तुम हमें देख नहीं पड़ते । कृष्ण के मुँह से यह सुन कर अर्जुन ने एक ऐसा वायव्य अस्त्र छोड़ा कि त्रिगर्तों के चलाये हुए सारे बाण न मालूम कहाँ चले गये। बाणेां के जाल के भीतर से कृष्ण और अर्जुन दोनों निकल आये । तब अर्जुन ने त्रिगत्तों को मारते मारते व्याकुल कर दिया; और भल्लास्त्र द्वारा किसी का सिर, किसी का हाथ, किसी का पैर काट काट कर फेंकने लगे। इस तरह बहुत सी त्रिगत-सेना मारी गई । जो थोड़ी सी बच रही थी उससे अर्जुन का प्रभाव और अधिक न सहा गया। वह भाग गई। अर्जुन ने जब देखा कि शत्रों ने पूरी हार खाई तब युधिष्ठिर के पास लौट आने के लिए बड़ी तेजी से रथ हाँका । राह में जो लोग उनके लौटने में रुकावट पैदा करने लगे उनका अर्जुन ने इस तरह नाश किया जैसे कमलों के वन में घुस कर मतवाला हाथी कमलों का नाश करता है । उनको इस तरह ठिकाने लगा कर अर्जुन ने बड़े वेग से प्रस्थान किया। परन्तु, उनके लौटने में फिर एक विघ्न उपस्थित हुआ। प्रागज्योतिषपुर के राजा भगदत्त ने अपने मेघ-सदृश हाथी के ऊपर से अर्जुन पर बाण बरसाना प्रारम्भ कर दिया। ___उस समय अर्जुन और भगदत्त में परस्पर महाघोर संग्राम हुआ । महाबाहु भगदत्त ने अजुन के बाणों को बात कहते व्यर्थ कर दिया; उनका एक भी बाण अपने पास तक न पहुँचने दिया। उन्होंने रथ-समेत कृष्ण और अर्जुन को मार डालने के इरादे से अपने हाथी को आगे बढ़ाया। कालान्तक यम की तरह उस हाथी को अपनी तरफ आते देख महात्मा कृष्ण ने बड़ी फुरती से रथ को हटा कर अपनी दाहिनी तरफ कर दिया। ____हाथी और उसके सवार को पीछे से मार डालने का अर्जुन के लिए यह अच्छा मौका था । पर अधर्म के नयाल से उन्होंने वैसा न किया। उधर उस महा-गज ने पाण्डवों की सेना का संहार श्रारम्भ कर दिया। इस पर अर्जुन को बड़ा क्रोध आया। हाथी पर लोहे की जाली की जो भूल पड़ी थी उसे अर्जुन ने अपने तेज़ बाणों से काट डाला और भगदत्त के फेंके हुए सारे अस्त्र-शस्त्रों को रोक कर उन्हें बे- तरह घायल किया । तब भगदत्त ने धनञ्जय के सिर पर तोमर नाम का हथियार मारा। उसके आघात से अर्जुन का किरीट टेढ़ा हो गया। अर्जुन ने किरीट को सीधा करके बड़े क्रोध में आकर भगदत्त से कहा :-- हे प्राग्ज्योतिष-नरेश ! अब सब लोगों को तुम अच्छी तरह देख लो। तुम्हारा अन्त समय आ पहुँचा। हमारे किरीट को अपनी जगह से हटानेवाला बहुत देर तक जीता नहीं रह सकता। यह सुन कर भगदत्त क्रोध से जल उठे और एक अंकुश अर्जुन पर फेंका। कृष्ण ने देखा कि अर्जुन उससे अपना बचाव नहीं कर सकते। इससे उन्होंने अर्जुन को तुरन्त अपनी आड़ में कर दिया और अपने ही उपर उस अंकुश को लिया । अर्जुन को यह बहुत बुरा लगा। वे दुखी होकर कृष्ण से कहने लगे :- हे मधुसूदन ! तुमने युद्ध न करने की प्रतिज्ञा की थी, उसे इस समय तुमने तोड़ दिया। यदि हम अशक्त हों, या और किसी कारण से अपनी रक्षा न कर सकते हों, तो हमारी रक्षा करना तुम्हारा काम है। परन्तु, इस समय तो हमारे हाथ में हथियार हैं और हम युद्ध कर रहे हैं; अतएव, ऐसी दशा में, तुम्हें युद्ध में दस्तंदाजी न करना चाहिए। यह कह कर अर्जुन ने भगदत्त के हाथी के मस्तक को सहसा सैकड़ों शरों से छेद दिया । भगदत्त ने हाथी को चलाने की हजार कोशिशें की, पर वह वहाँ से एक इञ्च भर भी न हटा । उसे बहुत सख्त चोट लगी थी। इससे कुछ ही पलों में उसका शरीर सन्न हो गया, वह जमीन पर गिर पड़ा, और जोर से चिल्ला कर उसने प्राण छोड़ दिये। उसी समय अर्जुन ने श्रद्धचन्द्र नामक बाण से भगदत्त के हृदय