पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दूसरा खण्ड ] युद्ध जारी २३३ ___ भगवन् ! हमने उस सुकुमार बालक को बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम दिया । हमें ऐसा न करना था। यह हमसे बड़ी भूल हुई। फिर, अकेले जयद्रथ ने हमें व्यूह के भीतर न धंसने दिया। इससे हम अभिमन्यु की सहायता भी कुछ न कर सके । यही सोच सोच कर हम अथाह शोक-सागर में डूब रहे हैं। बहुत सोच, विचार और चिन्ता करने पर भी हमारा जी नहीं मानता । हज़ार समझाने पर भी हमारा चित्त शान्त नहीं होता। व्यासदेव ने देखा कि युधिष्ठिर बहुत ही शोकाकुल हो रहे हैं। इससे उन पर उन्हें दया आई । काम्यक वन में द्रौपदी-हरण करने के कारण भीम ने जो जयद्रथ का अपमान किया था उसका स्मरण दिला कर व्यासदेव ने कहा कि, उसके बाद जयद्रथ की बहुत बड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें यह वर दिया है कि अर्जुन को छोड़ कर और पाण्डवों को एक न एक दिन तुम युद्ध में ज़रूर परास्त करोगे। इससे युधिष्ठिर को विदित हो गया कि अभिमन्यु के मरने की जो यह दुर्घटना हुई है सो उसी वरदान का प्रभाव है। इसमें उन्होंने दैव-गति ही को प्रबल समझा । अतएव उन्हें कुछ धीरज अाया और कलेजे को थाम कर किसी तरह अर्जुन के आने की राह देखने लगे। मनुष्यों का क्षय करनेवाले .उस भयानक दिन के अन्त में, अपने दिव्य अस्त्रों से त्रिगर्त लोगों का समूल संहार करके, अर्जुन अपने विजयी रथ पर सवार हुए और कृष्ण से युद्ध की बाते करते हुए अपनी सेना के पड़ाव में श्रा पहुँचे । वहाँ बड़ी उदासी देख कर उनके मन में शंका हुई। वे कृष्ण से कहने लगे :- हे जनार्दन ! न आज दुन्दुभी बज रही है, न अाज शंख-ध्वनि हो रही है, न अाज मङ्गल- सूचक तुरही ही सुनाई पड़ती है। यह बात क्या है ? योद्धा लोग भी हमें देख कर इधर-उधर भाग रहे हैं। हे माधव ! हम लोगों पर कोई बहुत बड़ी विपदा तो नहीं आई ? इस तरह बातचीत करते करते कृष्ण और अर्जुन ने डेरों में प्रवेश किया । वहाँ उन्होंने देखा कि पाण्डव लोग मन मलीन, मुँह लटकाये, आधे जी के बैठे हुए हैं। यह दशा देखते ही अर्जुन के पेट में खलबली पड़ गई । वहां उन्होंने अपने सब भाइयों और पुत्रों को तो देखा; परन्तु अभिमन्यु को न देखा । तब व्याकुल होकर उन्होंने कहा :- हे वीरो! तुम सबके मुँह उतरे हुए हैं और तुम लोग सदा की तरह प्रसन्न-मन हमसे मिलते भी नहीं। बेटा अभिमन्यु कहाँ है ? वह तेजस्वी बालक प्रति दिन उठ कर और कुछ दूर चल कर हमसे मिलता था। आज हम शत्रुओं का संहार करके आ रहे हैं; किन्तु वह हँसता हुआ आता हमें नहीं देख पड़ता। हमने सुना है कि श्राज आचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी। कहीं तुमने अभिमन्यु को उसके भीतर तो नहीं घुसने दिया? उस व्यूह के भीतर प्रवेश करना भर वह जानता है। हमने उसे उससे निकल आने की युक्ति नहीं बतलाई। ___ जब किसी ने अर्जुन की बात का उत्तर न दिया तब वे जान गये कि अभिमन्यु अब इस संसार में नहीं है । इससे उन्हें दुःसह दुःख हुआ। वे शोक-सागर में डूब कर विलाप करने लगे :- हाय ! पुत्र ! तुम्हें बार बार देख कर भी हमारा जी न भरता था। इस समय इस अभागी के गोद से निर्दयी काल ने तुम्हें हर लिया। इसमें सन्देह नहीं कि हमारा हृदय ईसपात का, नहीं नहीं वज्र का, है। इसी से ऐसे प्यारे पुत्र के न रहने से अब तक भी उसके दो टुकड़े नहीं हो गये। अब समझ में आया कि गर्व में चूर होकर धृतराष्ट्र की संतान क्यों सिंहनाद कर रही थी। जिस समय कृष्ण हमारे साथ आ रहे थे उस समय उन्होंने भी युयुत्सु को इस विषय में कौरवों का तिरस्कार करते सुना था । युयुत्सु यह कह कर कौरवों का धिक्कार कर रहे थे कि :- हे अधर्मियो ! अर्जुन से पार न पाकर एक बालक के प्राण लेकर तुम लोग वृथा आनन्द मना रहे हो। फा०३०