दूसरा लण्ड ] अन्त का युद्ध २५५ द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद उनकी सारी आशा-उनका सारा भरोसा कर्ण ही के ऊपर रह गया था। अतएव अश्वत्थामा के वचन सुन कर दुर्योधन का शोक बहुत कुछ कम हो गया। वे बोले :- हे कर्ण ! हम तुम्हारे बलवीय को अच्छी तरह जानते हैं। हम यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि हम पर तुम्हारी कितनी प्रीति है। हमारे सेनापति महारथ भीष्म और द्रोणाचार्य मारे गये हैं। इससे इस समय तुम्हें छोड़ कर हमारे लिए और कोई गति नहीं । तुम उन लोगों की भी अपेक्षा अधिक योग्य सेनापति होगे । वे दोनों महा-धनुर्द्धर बूढ़े वीर पेट से अर्जुन का भला चाहते थे। पितामह होने के कारण भीष्म ने दस दिन तक पाण्डवों की रक्षा की। उस समय तुम युद्र से पराङ्मुख थे-भीष्म के जीते हथियार न उठाने की तुमने शपथ खाई थी-इसी से अत्त में वे मारे गये । पाण्डवों को अपना शिष्य समझ कर आचार्य भी उन पर कृपा करते थे । हमें विश्वास है कि इस समय तुम्हारे द्वारा हमारी ज़रूर जीत होगी । अतएव तुम सेनापति के पद को स्वीकार करो। दुर्योधन की बात सुन कर महावीर कर्ण ने कहा :- हे कुरुराज ! हमने पहले ही तुम्हें कह रक्खा है कि पाण्डवों को हम बन्धु-बान्धवों समेत परास्त करेंगे। अतएव तुम्हारी आज्ञा के अनुसार सेनापति के पद को हम इस समय जरूर ही ग्रहण करेंगे। तुम अपने मन में अपने शत्रुओं को अब निश्चय ही मरा हुआ समझो। तब जीत की अभिलाषा से उत्साहित हुए राजों को साथ लेकर दुर्योधन ने कर्ण को सेनापति बनाने की तैयारी की। उन्होंने सोने और मिट्टी के कलश, हाथी, गैंडे और बैल के सींग, अनेक प्रकार के सुगंधित द्रव्य तथा और भी बहुत तरह की सामग्री मँगा कर, रेशमी बहुमूल्य वस्त्र पहने और ऊँचे आसन पर बैठे हुए महावीर कर्ण को विधि-पूर्वक सेनापति बनाया। इसके अनन्तर, थोड़ी रात रह जाने पर, तुरही आदि बाजे बजा कर कर्ण के कहने से उन्होंने सेना को तैयार होने के लिए आज्ञा दी । उस समय महाधनुर्द्धर कर्ण को अन्धकार का नाश करनेवाले सूर्य की तरह रथ पर बैठा देख कौरवों को भीष्म, द्रोण तथा और और वीरों के मारे जाने का दुःख भूल गया। वीर-श्रेष्ठ कर्ण ने बड़े जोर से शङ्ख बजा कर योद्धाओं के उत्साह को बढ़ाया। वे लोग शीघ्र ही युद्ध के लिए तैयार हो गये। तब कर्ण ने मकरव्यूह-मगर के आकार का एक व्यूह-बनाया। इस व्यूह के मुँह की जगह खुद कर्ण हुए; दोनों आँखों की जगह शकुनि और उलूक हुए; मस्तक की जगह अश्वत्थामा हुए; कमर की जगह बड़े बड़े वीरों को अपने चारों तरफ़ करके दुर्योधन हुए; और गर्दन की जगह धृतराष्ट्र के अन्याय पुत्र हुए। रहे चारों पैर, सो एक की जगह नारायणी सेना से घिर कर कृतवर्मा विराजमान हुए; दूसरे की जगह दक्षिणात्य सेना लेकर कृपाचार्य विराजमान हुए; तीसरे और चौथे की जगह महावीर त्रिगर्तराज और मद्रराज शल्य अपनी अपनी सेना समेत विराजमान हुए। नर-श्रेष्ठ कर्ण के इस तरह युद्ध के लिए तैयार होने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन की तरफ देख कर कहा :- भाई ! यह देखो अद्भुत वीर कर्ण ने कौरवों की सेना को कैसे कौशल से खड़ा किया है। कैसे चुने हुए वीर उन्होंने उसकी रक्षा के लिए नियुक्त किये हैं। परन्तु, कौरवों के श्रेष्ठ योद्वा सब मारे जा चुके हैं। इससे तुम्हारी जीत होने में हमें कोई सन्देह नहीं। तुम अब युद्ध करके आज बारह वर्ष से हमारी छाती में गड़े हुए कॉटे को निकालो। कौरवों ने जो व्यूह बनाया है उसके जवाब में पहले तुम्हें किसी अच्छे व्यूह की रचना करनी चाहिए। बड़े भाई की बात सुन कर अर्जुन ने अधकटे चन्द्रमा के आकार का व्यूह बनाया । उसकी
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