दूसरा सरड] युद्ध की समाप्ति २७५ की अच्छी तरह रक्षा करके उन्हें हस्तिनापुर पहुँचा दिया। कौरवों के मन्त्रियों को भी वे अपने साथ लेते गये । परम बुद्धिमान् विदुर ने युयुत्सु को देख कर उनकी बड़ी प्रशंसा की । वे बोले :-- ___बेटा ! कौरवों की स्त्रियों की रक्षा करके और उन्हें हस्तिनापुर पहुँचा कर तुमने बहुत अच्छा काम किया। इस समय तुम्हें यही मुनासिब था। तुमने अपने कुल के धर्म का पालन किया। यह हमारा अहोभाग्य है जो हम तुम्हें वीरों का नाश करनेवाले इस युद्ध से सकुशल लौट आया देखते हैं। तुम्हारे पिती धृतराष्ट्र बड़े ही अदूरदर्शी और डामाडोल चित्तवाले निकले । उनका राज्य-लोभ ही कौरवों के नाश का कारण हुआ। इस समय इस अभागी अन्धे राजा के बुढ़ापे की लकड़ी होने के लिए एक तुम्हीं बच रहे हो। ६-युद्ध की समाप्ति स्त्रियों के चले जाने और नौकरों के भाग जाने से कौरवों का शिविर-उनके रहने के डेरे- बिलकुल ही सूने हो गये । इससे सञ्जय-सहित बच हुए वे तीनों कौरव-वीर वहाँ न रह सके । वे फिर उस तालाब के पास गये और किनारे पर खड़े होकर जल के भीतर छिपे हुए दुर्योधन को पुकार कर कहने लगे :- __ महाराज ! जल से निकल कर हमारे पास आइए और शत्रुओं के साथ युद्ध करके या तो राज्य ही प्राप्त कीजिए या सुरलोक ही का रास्ता लीजिए । पाण्डवों के पास बहुत ही थोड़ी सेना रह गई है। यदि हम लोग मिल कर एक ही साथ उन पर आक्रमण करेंगे तो निश्चय ही वे लोग मारे जायेंगे। ___उत्तर में राजा दुर्योधन ने कहा :-- हे महारथी महाशयो ! हम इसे अपना अहोभाग्य समझते हैं, जो इस नर-नाशकारी युद्ध से तुम जीते बच गये हो। हमारा एक भी अङ्ग ऐसा नहीं जिसमें घाव न हो। तुम भी बहुत थक गय हो । पाण्डवों की बची हुई सेना भी बहुत थोड़ी नहीं है। तुस वीरों में श्रेष्ठ हो । इससे, हमारे हित- साधन के लिए, युद्ध करने का उत्साह दिखाना तुम्हें उचित ही है। परन्तु, हमारी समझ में यह समय पराक्रम दिखाने का नहीं है । आज रात भर आराम कीजिए और थकावट मिटाइए । कल तुम्हें अपने साथ लेकर हम निश्चय ही युद्ध करेंगे। तब महावीर अश्वत्थामा ने कहा :- महाराज! तुम तालाब से निकल आवो और निश्चिन्त होकर बैठो; हमीं शत्रुओं का नाश करेंगे । हम प्रतिज्ञा करते हैं कि शत्रों का संहार किये बिना हम शरीर से कदापि कवच न उतारेंगे। इसी समय कुछ व्याध उस जगह से आ निकले। वे मांस आदि लेकर पाण्डवों के शिविर को जा रहे थे। थक जाने के कारण वे वहीं तालाब के किनारे बैठ गये। उन्होंने वे बातें सुन लीं। इससे उन्हें मालूम हो गया कि राजा दुर्योधन जल के भीतर छिपे हुए हैं। इसके पहले ही विशेष रूप से दुर्योधन की खोज हो रही थी। शिविर में जो लोग आते जाते थे उनसे दुर्योधन का पता लगाने के लिए कहा जाता था। यह बात इन व्याधों को भी मालूम हो गई थी। इससे, बहुत साधन पाने की आशा से ये लोग युधिष्ठिर के डेरों की तरफ बड़ी शीघ्रता से चले। वहाँ पहुँचने पर द्वारपालों के मना करने की कुछ भी परवा न करके वे तुरन्त ही युधिष्ठिर के पास उपस्थित हुए और उनसे सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
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