पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३०८

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२७६ सचित्र महाभारत [ दूसरा सब ___ दुर्योधन का कुछ भी पता न पाने से पाण्डव लोग उस समय उदास बैठे थे। सारे झगड़े की जड़ दुर्योधन ही थे। उनके इस तरह लापता हो जाने से पाण्डव बहुत निराश हो रहे थे। चारों ओर भेजे गये दूत लौट लौट कर यही कहते चले जाते थे कि कुरुराज दुर्योधन का कुछ भी पता नहीं चलता । इस दशा में व्याधों के मुंह से दुर्योधन की खबर सुन कर पाण्डवों को बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने उन व्याधों को बहुत सा धन देकर सन्तुष्ट किया और उन्हें बिदा करके तत्काल ही उस तालाब की ओर प्रस्थान किया। उस समय महा भीषण सिंहनाद और कलकल-शब्द होने लगा। दुर्योधन का पता पाने से पाण्डव-सेना के वीर जोर जोर से आनन्द-ध्वनि करने लगे। बड़े वेग से दौड़ते हुए रथों की घरघराहट से थरती कँपने लगी। धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु, सात्यकि, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, और बचे हुए पाञ्चाल लोग चतुरङ्गिनी संना लेकर पाण्डवों के साथ युधिष्ठिर के पीछे पीछे चलें। कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा यह कोलाहल सुन कर दुर्योधन से कहने लगे :- महाराज ! युद्ध में विजय पाये हुए पाण्डव लोग यहाँ आ रहे हैं; आज्ञा हो तो अब हम यहाँ से चल दें। ___बहुत अच्छा-कह कर दुर्योधन उसी जल-स्तम्भ के भीतर चुपचाप बैठे रहे। वहाँ से कुछ दूर पर बरगद का एक पेड़ था । कृपाचार्य ने उसके नीचे जाकर घोड़े को खोल दिया और वहीं ठहर गये। __इतने में पाण्डव लोग उस तालाब के तट पर आ गये । वहाँ जल-स्तम्भ देख कर धर्मराज ने कृष्ण से कहा :- हे कृष्ण ! इस तालाब से दुर्योधन को निकालने की क्या तरकीब करनी चाहिए । हमारे जीत रहते यह पापात्मा कभी चुप बैठने का नहीं; एक न एक षड्यन्त्र रचा ही करेगा। कृष्ण बोले :- हे धर्मराज ! इस समय कोई कौशल करना चाहिए । दुर्योधन के साथ उस्तादी किये बिना काम न चलेगा। तुम ऐसी कड़ी कड़ी बाते उसे सुनाओ कि क्रोध से उत्तेजित होकर वह जल के बाहर निकल श्रावे। तब जल के भीतर छिपे बैठे हुए दुर्योधन को पुकार कर युधिष्ठिर इस प्रकार जोर जोर कहने लगे :- हे कुरुराज ! तुमने अपने पक्ष के सारे क्षत्रियों का नाश कर दिया। यही नहीं, किन्तु तुम्हारे कारण तुम्हारे वंश का भी कोई मनुष्य जीता नहीं बचा। अब क्या समझ कर तुम अपनी जान बचाने के लिए जल के भीतर छिपे बैठे हो ? सब लोग तुम्हें बहुत बड़ा वीर बतलाते हैं परन्तु आज तुम्हें प्राण जाने के डर से छिपे बैठे देख तुम्हारी वीरता की बात बिलकुल ही मिथ्या मालूम होती है। इससे तुम्हें चाहिए कि तुम तुरन्त ही जल से निकल श्रावो और हमें मार कर या तो राज्य प्राप्त करो या हमारे हाथ से परास्त होकर स्वर्ग की राह लो। यह सुन कर दुर्योधन ने जल के भीतर ही से कहा :- महाराज ! जितने प्राणी हैं सभी को अपना अपना प्राण प्यारा है। अतएव, प्राण जाने से यदि कोई डरे तो आश्चर्य ही क्या है ? परन्तु, हम प्राण बचाने के लिए नहीं भाग आये। रथ और अल-शस्त्र पास न रह जाने से हम बहुत थक गये हैं। इससे, हम यहाँ सिर्फ विश्राम कर रहे हैं-