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पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३०९

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दूसरा खण्ड]
२७७
युद्ध की समाप्ति

सिर्फ थकावट दूर करने के लिए हम यहाँ आ बैठे हैं। तुम जरा देर अपने साथियों सहित ठहरो । हम बहुत जल्द जल से निकल कर तुम्हारे साथ युद्ध करेंगे।

युधिष्ठिर ने कहा :---दुर्योधन ! हम खूब आराम कर चुके हैं। तुम्हें ढूँढ़ते हमें बड़ी देर हुई । इससे तुरन्त ही जल से निकल कर तुम युद्ध करो। अधिक देर तक हम नहीं ठहर सकते । तब दुर्योधन ने उत्तर दिया:- महाराज ! अपने जिन भाइयों के लिए हम राज्य पाने की कामना करते थे वे सभी स्वर्गवासी हो चुके हैं। इस समय हमें यह क्षत्रिय-शून्य और धनहीन राज्य पाने की जरा भी इच्छा नहीं। हम इस समय भी सारे पाण्डवों और पाञ्चाल लोगों को मारने में समर्थ हैं। किन्तु भीष्म, द्रोण और कर्ण आदि के मारे जाने से हम अब और युद्ध नहीं करना चाहते । अतएव, तुम्हीं इस धन, धान्य, हाथी, घोड़े और बन्धु-बान्धवहीन राज्य का भोग करो। हमारे सदृश राजा इस तरह का राज्य पाने की इच्छा नहीं रखता। इसके सिवा, अपने प्यारे पुत्र और भाइयों के न रहने से हम अब जीते भी नहीं रहना चाहते । हम तो अब मृगछाला लेकर वन का रास्ता लेंगे। युधिष्ठिर ने कहा :- हे दुर्योधन ! जल के भीतर बैठे बैठे तुम व्यर्थ विलाप कर रहे हो। तुम्हारे ऐसा करने से हमें जरा भी दया आने की नहीं। राज्य दे डालने की जो तुम बात कहते हो सो तुम्हारा बकवाद-मात्र है। उससे कुछ लाभ नहीं। राज्य-दान करने का तुम्हें अधिकार ही कहाँ और, तुम्हारा दिया हा राज्य हम लेंगे क्यों ? अब हम और तुम दोनों एक साथ जीते नहीं रह सकते । या तो तुम्हीं जीते रहोगे, या हमीं । इससे वृथा बातें मत बनाओ। या तो राज्य लो, या स्वर्ग की राह । दो में से एक बात करो। देर मत करो। युधिष्ठिर के तिरस्कार-पूर्ण वचन दुर्योधन से और नहीं सहे गये । वे तुरन्त ही जल से निकल आये और बोले :- . हे कुन्तीनन्दन ! तुम्हारे पास रथ हैं, हाथी हैं, घोड़े हैं, बन्धु-बान्धव हैं, सेना है । हम अकेले हैं और थके हुए हैं; न हमारे पास सेना है, न हमारे पास हथियार हैं । फिर किस तरह हम तुमसे युद्ध करेंगे । एक मनुष्य का अनेक मनुष्यों के साथ यद्व करना धर्म की बात नहीं। हे पाण्डव ! यह न समझना कि तुम्हें देख कर हम डर गये हैं । यदि तुम में से एक एक आदमी हमसे युद्ध करेगा तो हम सबको यमराज के घर भेज देंगे। दुर्योधन के मुँह से यह सुन कर युधिष्ठिर ने कहा :- हे दुर्योधन ! अहोभाग्य ! जो तुम आज क्षत्रियों के धर्म का स्मरण करते हो । किन्तु जिस समय अनेक महारथियों के साथ तुम लोगों ने बालक अभिमन्यु का वध किया उस समय तुन्हारी बुद्धि कहाँ गई थी ? तब न तुम्हें क्षत्रिय-धर्म याद आया ! विपति पड़ने पर सभी को धर्म याद आता है; परन्तु सम्पत्ति के समय परलोक का दरवाजा बन्द देख पड़ता है। खैर, इन बातों से अब क्या लाभ है ? तुम कवच पहन कर जो हथियार चाहो लेकर, हम में से जिसके साथ तुम्हारा जी चाहे, युद्ध करो। हम लोगों में से यदि तुम एक को भी मार सको तो यह सारा राज्य तुम अपना ही समझो। हमारी इस बात को सच मानो; इसमें जरा भी बनावट नहीं। यह सुन कर दुर्योधन बड़े खुश हुए। उन्होंने लोहे का कवच पहना, केशां को कस कर सिर पर बाँधा और गदा हाथ में लेकर कहा :- हे धर्मराज ! तुमने हमें एक आदमी के साथ युद्ध करने की अनुमति दी है। इससे, तुममें से जिसका जी चाहे हमारे साथ गदा-युद्ध के लिए निकल आवे । तुम लोगों में कोई भी ऐसा नहीं जो गदा-