२७८ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड युद्ध में हमारी बराबरी कर सके। जिसकी इच्छा हो, हाथ में गदा ले और हमारी बात के झूठ-सच होने की परीक्षा कर देखे। दुर्योधन के मुँह से इस प्रकार घमण्ड की बातें सुन और उन्हें पैतड़ा बदलते देख कृष्ण को बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा :- महाराज ! दुर्योधन के द्वारा एक ही आदमी के मारे जाने पर तुमने किस बल पर-किस साहस पर-सारा राज्य ले जाने की अनुमति दी ? यह दुरात्मा यदि तुमको, या अर्जुन को, या नकुल- सहदेव को गदा-युद्ध के लिए ललकारता तो तुम्हारी क्या दशा होती ? गदा-युद्ध में तुममें से कोई भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता। भीमसेन अधिक बलवान् जरूर है; पर दुयोधन का बढ़ा चढ़ा है । और, इस युद्ध में अभ्यास ही प्रधान है। इस समय, निश्चय जान पड़ता है, कि पाण्डवों के भाग्य में राज्य पाना बिलकुल लिखा ही नहीं; विधाता ने उन्हें वनवास करने और भीख माँग कर पेट भरने ही के लिए पैदा किया है। यह सुन कर महातेजस्वी भीमसेन ने मुस्करा कर कहा :- हे मधुसूदन ! आप क्यों व्यर्थ दुःख करते हैं ? दुर्योधन को मार कर आज हम निश्चय ही वैर की आग बुझा देंगे। इस पर कृष्ण को धीरज हुआ । भीमसेन की प्रशंसा करके वे बोले :- हे वीर ! इसमें सन्देह नहीं कि तुम्हारे ही बाहुबल के प्रभाव से धर्मराज शत्रहीन होंगे। इस समय बड़ी सावधानी से तुम्हें युद्ध करना चाहिए। यादव-श्रेष्ठ बलराम इस समय तीर्थ यात्रा करने गये थे। वहाँ से लौटने पर उन्हें युद्ध का हाल मालूम हुआ। इससे युद्ध-सम्बन्धी सारी बातें जानने के लिए वे वहाँ आकर उपस्थित हुए। उन्हें देख कर सब लोग झट पट उठ बैठे और आगे बढ़ कर उन्हें लिया। उनके पैर छूकर सबने उनका यथेट आदर-सत्कार किया। तदनतर, उन्होंने युद्ध का सारा वृत्तान्त बलराम से कह सुनाया। बलराम ही ने भीम और दुर्योधन को गदा-युद्ध सिखलाया था। वे इन लोगों के गुरु थे। अतएव इन दोनों ने अपनी अपनी गदा उठा कर गुरु का अभिवादन किया। बलराम ने सबको हृदय से लगाया और कहने लगे :- हे वीरो ! तीर्थ-यात्रा करते हमें बयालीस दिन हुए । किन्तु अब तक तुम लोगों का युद्ध समाप्त नहीं हुआ। हमने मन में कहा था कि इस युद्ध में हम किसी प्रकार शामिल न होंगे । परन्तु, अपने दोनों शिष्यों का गदा-युद्ध देखने की अभिलाषा इस समय हमारे मन में हो रही है । यह स्थान युद्ध के लिए अच्छा नहीं। इसकी अपेक्षा पुण्यतीर्थ कुरुक्षेत्र ही युद्ध के लिए अधिक उपयोगी है । अतएव, चलिए सब लोग वहीं चलें। बलराम के कहने से सब लोग कुरुक्षेत्र गये। वहाँ गदा-युद्ध के योग्य एक अच्छी जगह चुनी गई । बलदेव मध्यस्थ बनाये गये । वे बीच में बैठे । और लोग युद्ध देखने के लिए उन्हें घेर कर उनकी चारों तरफ बैठ गये। भीमसेन कवच पहन कर और एक बहुत बड़ी गदा लेकर अखाड़े में उतर पड़े। दुर्योधन ने भी सोने का कवच धारण किया, और एक महा भयङ्कर गदा हाथ में लेकर उनके सामने आ खड़े हुए ! इसके अनन्तर, बड़े जोर से गरज कर महाबली दुर्योधन के द्वारा युद्ध के लिए ललकार जाने पर भीमसेन ने कहा :- हे दुर्योधन ! आज तक तुमने जितने दुष्कर्म किये हैं-जितने पाप किये हैं-सबका स्मरण कर लो। इस समय हम तुम्हें उन सबका उचित दण्ड देंगे।
पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३१०
दिखावट