२७९ दूसरा लण्ड ] बुद्ध की समाप्ति इसके उत्तर में दुर्योधन बोले :- रे कुलाधम ! वृथा बकवाद करने की ज़रूरत नहीं। मुँह से जो कहते हो उसे कर दिखाओ। यह सुन कर सेना के लोग दुर्योधन की प्रशंसा करने लगे। इससे दुर्योधन बहुत खुश हुए। भोम जल भुन गये। वे गदा उठा कर दौड़े। दोनों परस्पर भिड़ गये। एक दूसरे को हराने की इच्छा से अद्भुत अद्भुत दाँव-पेंच खेलने लगे। घोर युद्ध होने लगा। गदायें तडातड़ एक दूसरी पर गिरने लगीं। उनकी रगड़ से चिनगारियाँ निकलने लगी । उन चिनगारियों से युद्ध-भूमि व्याप्त हो गई। ___ दोनों वीर अपना अपना बचाव करके परस्पर एक दूसरे के बदन पर गदा मारने की जी जान से कोशिश करने लगे। कभी वे पीछे हट जाते, कभी आगे बढ़ जाते, कभी ऊपर उछल जाते, कभी पैतड़ा बदल कर एक तरफ़ हट जाते । कभी बदन सिकोड़ कर खड़े हो जाते, कभी चक्कर काट कर गदा की चोट बचा जाते । धीरे धीरे युद्ध ने बड़ा ही भयङ्कर रूप धारण किया। दोनों के थोड़ी बहुत चोट लगी। बदन में जगह जगह से खून बह निकला। अन्त में दुर्योधन दाहिनी तरफ़ हुए और भीमसेन बाई तरफ़ । दुर्योधन ने भीम के पेट और पीठ के बीच बाजू. में गदा मारी। उसके लगने से भीम को बड़ा क्रोध हुआ । उसका बदला लेने के लिए उन्होंने अपनी वनतुल्य भीषण गदा उठा कर चलाने के लिए उसे घुमाया । पर दुर्योधन उस गदा पर अपनी गदा मार साफ बच गये। यह देख कर लोगों को बड़ा विस्मय हुआ । सबने आश्चर्य से दाँतों तले उँगली दबाई । धीरे धीरे कुरुराज दुर्योधन अनेक प्रकार के गदा-युद्ध-सम्बन्धी कौशल दिखाते हुए अखाड़े में चारों तरफ़ चक्कर लगाने लगे। इस पर सब लोगों को निश्चय हो गया कि गदा चलाने में वे भीम की अपेक्षा अधिक निपुण हैं । उनके गदा घुमाने के वेग को देख कर पाण्डवों के मन में डर का सञ्चार हो पाया। - इसके अनन्तर, दुर्योधन ने भीमसेन के सिर पर गदा की एक चोट मारी। उससे भीमसेन घबराये तो नहीं, पर क्रोध से उनकी आँखें लाल हो गई और होंठ फरकने लगे। उन्होंने भी दुर्योधन को मारने के लिए गदा चलाई। पर दुर्योधन गदा-युद्ध में इतने प्रवीण थे कि उछल कर एक तरफ़ हो गये और भीम की वह गदा व्यर्थ गई । इतने में दुर्योधन को जो मौक़ा मिला तो उन्होंने भीमसेन की छाती पर अपनी गदा का एक ऐसा प्रचण्ड आघात किया कि भीमसेन के बड़ी चोट आई। ते प्रायः बेहोश हो गये । तथापि, इतने पर भी वे घबराये नहीं-उन्होंने धीर नहीं छोड़ा। दुर्योधन ने समझा था कि लगे हाथ भीम के एक और गदा मारेंगे। परन्तु भीमसेन के शरीर सर घबराहट के कोई चिह्न उन्होंने न देखे । उलटा भीमसेन को अपने ऊपर चोट करने के लिए गदा उठाते देखा। इससे दुर्योधन को भीमसेन पर फिर चोट करने का मौका न मिला। इसके बाद, जरा देर में, भीमसेन की तबीयत जो फिर पहले की तरह ठीक हुई तो उन्होंने अपनी गदा सँभाली और बड़े क्रोध में आकर दुर्योधन पर झपटे। उन्होंने कुरुराज दुर्योधन के पेट और पीठ के बीच बड़े जोर से गदा मारी। उसकी चोट से दुर्योधन का शरीर थोड़ी देर तक सुन्न हो गया और गाँठों के बल वे जमीन पर आ रहे । यह देख पाण्डवों के पक्षवाले सिंहनाद करने लगे। इस प्रकार की गई भीमसेन की प्रशंसा दुर्योधन से न सही गई। वे बे-तरह उत्तेजित हो उठे और गदा-युद्ध-सम्बन्धी नई नई करामातें दिखलाते हुए भीमसेन पर बार बार चोटें करने लगे। भीमसेन ने शरीर पर जो कवच धारण किया था वह टूट कर टुकड़े टुकड़े हो गया। बड़ी कठिनता से वे धैर्य धारण कर सके। और कोई होता तो इतनी मार खाने पर कभी का अखाड़े से भाग गया
पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३११
दिखावट