पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३१२

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[ दूसरा खण्ड
सचित्र महाभारत

होता। परन्तु भीम महाबली थे। इससे इतने पर भी वे वहाँ डटे रहे। इस समय कृष्ण को बड़ी चिन्ता हुई। वे अर्जुन से कहने लगे :- . मित्र ! दुर्योधन के बहुत बड़े योद्धा होने में कोई सन्देह नहीं। अतएव, इसके साथ न्याय- पूर्वक युद्ध करने से भीमसेन कभी जीतने के नहीं। दुर्योधन शठ है; इससे इसके साथ शठता किये बिना काम न चलेगा। खुद इन्द्र भी छल-कपट करके किसी तरह अपना काम सिद्ध करते हैं। भीमसेन ने जो दुर्योधन की जङ्घा तोड़ने की प्रतिज्ञा की है उसी प्रतिज्ञा को पूर्ण करके उन्हें दुर्योधन को मारना चाहिए। ऐसा किये बिना धर्मराज पर जरूर संकट आवेगा। तुम्हारे जेठे भाई बड़े ही नादान और कम समझ हैं। क्या सोच कर हममें से एक का भी पराजय होने पर उन्होंने राज्य दे देने की प्रतिज्ञा की ? यह सुन अर्जुन ने अपने बायें घुटने पर थपेड़ा मार कर भीमसेन को इशारा किया। भीम- सेन इस इशारे को समझ गये। उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद हो आई । गदा उठाकर वे दुर्योधन की बाई तरफ हो गये और उन्हें मारने का अवसर हूँढ़ने लगे। दुर्योधन को धोखा देने के लिए वे इस तरह युद्ध करने लगे मानों उन्हें अच्छी तरह गदा चलाना आता ही नहीं। जान बूझ कर उन्होंने दुर्योधन को अपने शरीर पर वार करने का मौका दिया। भीमसेन के फन्दे में दुर्योधन आ गये। वे भीमसेन पर झपटे । इतने में भीमसेन ने एकाएक दुर्योधन पर आक्रमण किया। दुर्योधन उछल कर बच तो गये; परन्तु उछलने के साथ ही भीमसेन ने उनके दोनों घुटनों को ताक कर नियम के विरुद्ध गदा मारी । गदा बड़े जोर से लगी। दुर्योधन की जंघा की हड्डी टूट गई और वे धड़ाम से जमीन पर गिर पड़े। तब भीमसेन क्रोध के वशीभूत होकर पागल की तरह दुर्योधन के पास गये और उनके मस्तक पर बार बार लात मार कर कहने लगे। . रे दुरात्मा ! तू ने जो हमारी दिल्लगी और द्रौपदी का अपमान किया था उसी का यह फल है। भोग कर। भीमसेन का यह नीच काम किसी को अच्छा नहीं लगा। सब लोग उनकी निन्दा करने लगे । भीम को अपने मुँह अपनी बड़ाई करते देख धर्मराज उनका तिरस्कार करने लगे। वे बोले :- हे भीमसेन ! शत्रता के ऋण से तुम उद्धार हो गये। नीति से हो या अनाति से हो, किसी तरह तुमने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर दिखाई। अब शान्त हो जाव; और अधर्म मत करो। इस वीर की सेना, भाई, बन्धु-बान्धव और पुत्र आदि सभी मारे जा चुके हैं; कोई भी जीते नहीं। अतएव इसकी दशा इस समय बड़ी ही शोचनीय है। इसके सिवा ये कुरुराज हमारे भाई हैं। फिर क्यों तुम इनके साथ ऐसा अनुचित और अपमानकारक व्यवहार करते हो ? इसके अनन्तर वे बड़े ही दीन भाव से दुर्योधन के पास गये और आँखों में आँसू भर कर कहने लगे:- भाई ! अपने किये कम्मों का तुमने बहुत ही घोर फल पाया। इस समय अब अधिक शोक करने से कोई लाभ नहीं । मृत्यु ही अब तुम्हारे दुःख को दूर करेगी। हम लोग बड़े अभागी हैं, क्योंकि हमें बन्धु-बान्धवों से शून्य राज्य करना और अपनी भौजाइयों को शोक से सन्तप्त देखना पड़ेगा। इधर, अधर्म से दुर्योधन को मारा गया देख गदा-युद्ध में परम प्रवीण महात्मा बलराम बड़े जोर से चिल्ला कर कहने लगे :- शास्त्र में लिखा है कि नाभि से नीचे किसी जगह गदा मारना मना है। यह बात सभी जाहते हैं और इस नियम को सारे योद्धा मानते भी हैं। किन्तु महामूर्ख भीमसेन ने इस नियम का मंग करके मनगानी की है।