पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३१८

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सचित्र महाभारत [ दूसरा लण्ड किया । अब यदि तुम यह निन्द्य काम करोगे तो वह सफेद कपड़े पर खून के धब्बे की तरह सारी दुनिया की आँखों में खटकेगा। तब अश्वत्थामा बोले :- मामा ! आपने जो कुछ कहा सच है । परन्तु, धर्म के पुल को पाण्डव लोग एक जगह नहीं, सौ जगह, पहले ही तोड़ चुके हैं । झूठी खबर सुना कर हमारे पिता के हथियार रख देने पर उन्हें मार डाला; रथ का पहिया कीचड़ से निकालते समय कर्ण का सिर काट लिया; और, अन्त में, अधर्म-युद्ध करके कुरुराज दुर्योधन की जंघा की हड्डी तोड़ दी ! मामा ! आज ही रात को हम अपने पिता की हत्या करनेवालों का नाश करेंगे। इस काम से अगले जन्म में यदि हम पशु या कीड़े भी हों तो भी कुछ परवा नहीं। उसे भी हम अच्छा ही समझेगे।। __इतना कह कर महा-तेजस्वी अश्वत्थामा रथ में घोड़े जोत कर शत्रओं के शिविर की तरफ चल पड़े। कृपाचार्य और कृतवा लाचार होकर उनके पीछे पीछे दौड़े। क्रोध से भरे हुए अश्वत्थामा ने शिविर के पास पहुँच कर ग्थ के वेग को कम कर दिया। उस समय पाण्डव और पाञ्चाल लोग शिविर के भीतर सुख से सो रहे थे। शिविर के द्वार पर पहुँच कर कृपाचार्य और कृतवर्मा ने जब यह देखा कि अश्वत्थामा भीतर घुसन को है तब वे वहीं ठहर गये । यह देख अश्वत्थामा प्रसन्न हो कर बोले :- हे दोनों वीर ! हम इस समय शत्रों के शिविर के भीतर जाकर काल की तरह भ्रमण करेंगे। हमारी आप से इतनी ही प्रार्थना है कि इस जगह से कोई जीता न जाने पावे। जो कोई आपको यहाँ इस द्वार पर मिले उसे मारे बिना न रहना। ___इतना कह कर बड़ी बड़ी भुजाओंवाल द्रोण-पुत्र ने शिविर का सदर दरवाजा छोड़ दिया । संतरी लोगों की नजर बचा कर छिपे छिपे वे एक और ही रास्ते से शिविर के भीतर घुसे। चुपचाप धीरे धीरे पैर रखते हुए सबसे पहले वे धृष्टद्युम्न के डेरों में गये । दिन भर युद्ध करने के कारण पाञ्चाल लोग बेहद थक गये थे। इससे वे अचेत सो रहे थे। यह देख अश्वत्थामा को बड़ी खुशी हुई । बड़ी फुरती से वे धष्टद्यम्न के सोने के कमरे में पहुँचे । उन्होंने देखा कि दिव्य सेज पर सुन्दर बिछौना बिछा हुआ है और सुगन्धित फूल-मालाओं से उसकी शोभा दूनी हो रही है। उसी पर धृष्टद्युम्न सुख से सोये हैं। ___अश्वत्थामा ने लात मार कर उस सोते वीर को जगाया। धृष्टद्यम्न के उठते ही अश्वत्थामा ने उनके बाल पकड़ लिये और जमीन पर पटक दिया। सोते से अचानक उठने के कारण धृष्टद्युम्न का शरीर शिथिल हो रहा था, वह काबू में न था। एकाएक आक्रमण होने से वे डर भी गये थे। अतएव, अश्वत्थामा से किसी तरह वे अपना बचाव न कर सके । धृष्टद्युम्न की छाती और कण्ठ पर लातों की मार, मार कर अश्वत्थामा पशु की तरह उनका वध करने लगे। धृष्टद्युम्न ने पड़े पड़े नाखूनों से खुरच कर अश्वत्थामा के शरीर से खून निकाल लिया। पर और कुछ उनसे नहीं कहते बना । बोला तो उस ममय उनसे साफ़ साफ़ जाता ही न था। धीमे स्वर में किसी तरह उन्होंने कहा :-- हे अश्वत्थामा ! हथियार से हमारा वध करो; जिसमें हम वीर-लोक को प्राप्त हों। इस पर क्रोध से जल भुन कर अश्वत्थामा ने उत्तर दिया:- रे कुलाङ्गागार ! प्राचार्य की हत्या करनेवालों को वीर-लोक नो क्या और भी काई लोक पान का अधिकार नहीं। यह कह कर जोर जोर से लातों की मार देकर उन्होंने धृष्टद्यम्न के प्राण ले लिये । इतन