पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३२९

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दूसरा ल] पाण्डवों का एकाधिपत्य २९७ ___ इधर युधिष्ठिर की अगवानी करने के लिए नगर-निवासी नगर और राजमार्ग सजाने लगे। असंख्य प्रादमियों के आने जाने और कोलाहल से रास्तों में धूम मच गई । जल से भरे हुए नये नये घड़े और सुगन्धित फूल लिये हुए गोरी गोरी कुमारियों से नगर का द्वार ठसाठस भर गया। इससे उसकी शोभा अपूर्व हो गई। राजमार्ग पर झंडियाँ गाड़ दी गई और धूप सुलगा दी गई। राजभवन सुगन्धित फूलों और मालाओं से म्यूब सजाया गया। ___ भाइयों के साथ गजा युधिष्ठिर ने बन्दी जनों का स्तुतिगान सुनते हुए उस शोभा-सम्पन्न नगर में प्रवेश किया। हजारों नगर-निवासी उनके दर्शन के लिए वहाँ आने लगे । राजमार्ग के आस पास की सजी हुई अटारियाँ राजा के दर्शन करने की इच्छा से आई हुई स्त्रियों के बोझ से मानों काँपने लगीं। पाण्डवों और द्रौपदी की प्रशंमा के वाक्यों और हर्षसूचक शब्दों से सारा नगर गूंज उठा। राजा युधिष्ठिर धीरे धीरे राजमार्ग को पार करके राजभवन के पास पहुँच गये । तब नगर- निवासी उनके पास आकर कहने लगे :- __महाराज ! आपने सौभाग्य और पराक्रम के प्रभाव से शत्रुओं को धर्मानुसार हरा कर फिर राज्य प्राप्त किया है। अब हमारे राजा होकर धर्म के अनुसार प्रजा-पालन कीजिए। इस तरह नाना प्रकार के मङ्गल-वाक्य और ब्राह्मणों के अशीर्वाद सुनते हुए धर्मराज इन्द्रलोक के तुल्य राजभवन में पहुँच कर रथ से उतरे। पहले तो घर में जाकर उन्होंने देव-पूजन किया; फिर नगर के द्वार पर आये और आशीर्वाद देनेवाले ब्राह्मणों को बहुत सा धन देकर उन्हें सन्तुष्ट किया। उस समय जय जयकार की मधुर ध्वनि से आकाश गूंज उठा। __इसके बाद दुःख और शाक छोड़ कर पूर्व की तरफ़ मुँह करके कुन्ती के पुत्र युधिष्ठिर सोने के सिंहासन पर बैठे । तब महावीर सात्यकि और कृष्ण धम्मराज के सामने सुनहली चौकी पर, भीम और अर्जुन दोनों तरफ़ रत्न-जटित आसन पर, नकुल और सहदेव के साथ कुन्ती हाथीदांत के आसन पर, महात्मा विदुर, पुरोहित धौम्य तथा वृद्ध राजा धृतराष्ट्र भी अच्छे अच्छे उज्ज्वल आसनों पर बैठे। धम्मराज युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक सफेद फल, भूमि, सोना, चाँदी और रत्न छए। तब तरह तरह की मङ्गल-वस्तु लेकर उनके दर्शनों के लिए प्रजा पाने लगी। ___ इसी समय मिट्टी, सोना, तरह तरह के रन, अनेक धातुओं से बना और जल से भरा हुआ घड़ा, फूल, खोलें, आग, दूध, शहद, घी, सोने से जड़ा हुआ शङ्ख और शमी, पीपल तथा ढाक की लकड़ियाँ आदि राजतिलक का सब सामान वहाँ लाया गया। तब कृष्ण की आज्ञा पाकर पुरोहित धौम्य ने विधि के अनुसार वेदी बनाई । उसके ऊपर व्याघ्रचर्म बिछे हुए सर्वतोभद्र श्रासन पर द्रौपदी-सहित महाराज युधिष्ठिर बैठे और अनि को आहुतियाँ देने लगे। तब सब लोग उठ खड़े हुए और कृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक सङ्घ में जल लेकर युधिष्ठिर के तिलक किया। इस समय तरह तरह के बाजे बजने लगे। ब्राह्मण लोग बड़ी प्रसन्नता से कहने लगे:- महाराज ! आपने सौभाग्य-वश अपने ही पराक्रम से शत्रुओं को जीता और धर्मपूर्वक राज्य को प्राप्त किया है। बड़े भाग्य थे जो महावीर भीमसेन, गाण्डीवधारी अर्जुन, और माद्री के पुत्र नकुल और सहदेव सहित आप, वीरों का नाश करनेवाले उस भयङ्कर संग्राम से बच गये हैं। इसलिए अब अपना कर्त्तव्य पालन कीजिए। ___ इस प्रकार सज्जनों से आदर पाये और मित्रों से घिरे हुए धर्मराज अपने विस्तृत राज्य के अधिकारी हुए । माङ्गलिक क्रिया समाप्त होने पर उन्होंने कहा :- हे विप्रगण ! पाण्डवों में गुण हों या न हों, जब आप लोग सब उनके गुण गाते हैं तब फा०३८