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पहला खण्ड] पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों की जन्म-कथा अनेक। किसे उसको देना चाहिए, यह सोच कर कुन्तिभोज बड़े असमंजस में पड़े। अन्त में उन्होंने स्वयंवर करना ही उचित समझा। उन्होंने कहा, स्वयंवर में जिसे कुन्ती पसन्द कर लेगी उसी के साथ उसका विवाह कर देंगे । यह सोच कर उन्होंने सब राजों को, स्वयंवर में आने के लिए, मिन्त्रण भेजा। स्वयंवर के दिन हज़ारों राजे उत्तोमोत्तम वस्त्र और अलङ्कार धारण करके कुन्ती के पाने की इच्छा से आये । महागज पाण्डु भी भीष्म की आज्ञा से आकर उपस्थित हुए। विवाह के समय कन्या का जैसा वेश होना चाहिए वैसे वेश में, धीरे धीरे पैर उठाती हुई, लज्जा, उत्साह और भय के कारण सङ्कोच करती हुई, हाथ में फूलों की माला लिये हुए, स्वयंवर की सभा में कुन्ती आई। आकर उसने सारे राजों को चकित होकर देखा । देखते ही उसकी दृष्टि भरत-वंशावतंस महाबलवान् पाण्डु पर पड़ी । महाराज पाण्डु अपने सूर्य-सदृश तेज से सारे राजों के तेज को मलिन कर रहे थे। उनके सामने और राजों का तेज फीका पड़ गया था। उन्हें देख कर कुन्ती मोहित हो गई। उसने किसी और की तरफ़ फिर कर न देखा । लज्जा के मारे सिर झुका कर उसने अपने हाथ के वर-माल को महाराज पाण्डु के गले में डाल दिया। जब और राजों ने देखा कि कुन्ती ने पाण्डु को माला पहना दी, तब वे चुपचाप उठ कर अपने अपने घर चल दिये । उन्होंने इस काम में कुछ भी विन्न-बाधा डालने का साहस नहीं किया। शुभ लग्न में पाण्डु के साथ पृथा का विवाह हुआ। कुन्तिभोज ने बहुत सी धन-सम्पत्ति देकर वर-कन्या को उनके नगर भेज दिया। ब्राह्मणेां के आशीर्वाद सुनते सुनतं नव-विवाहित पाण्डु और कुन्ती ने नगर में प्रवेश किया और सुख से रहने लगे। इसके अनन्तर भीष्म ने मद्रदेश के राजा शल्य की एक अनुपम रूपवती बहन की बात सुनी । मद्रराज के वंश को अपने वंश के योग्य समझ कर उन्होंने उस वंश से सम्बन्ध करना चाहा । उन्होंने विचार किया कि पाण्डु का एक और विवाह करना चाहिए। इसी मतलब से बड़े ठाट बाट से उन्होंने मद्रदेश की तरफ़ यात्रा की । जब मद्रराज को यह खबर मिली तब वे बहुत ही प्रसन्न हुए। बड़े आदरपूर्वक आगे आकर वे भीष्म से मिले और प्रीतिपूर्वक बातें करते करते उन्हें अपने नगर में ले आये । भीष्म ने भी महाराज से बड़ी शिष्टता दिखाई। हाथी, घोड़े, ग्थ, वस्त्र, आभूषण, हीरा, मोती श्रादि देकर उन्होंने मद्रराज को प्रसन्न किया; और उनकी बहन माद्री को लेकर हस्तिनापुर लौट आये। यथासमय पाण्डु से उसका विधिपूर्वक विवाह हुआ। इसके कुछ समय पीछे राजा देवक की परम सुन्दरी कन्या पारशवी को लाकर भीष्म ने विदुर के साथ उसका विवाह किया। इस प्रकार एक एक करके तीनों भतीजों का अच्छी तरह विवाह करके वंशलोप होने की शङ्का को भीष्म ने दूर कर दिया। तब वे सब प्रकार निश्चिन्त हो गये। _____ अपने मनोहर महल के अन्तःपुर में दोनों रानियों के साथ कुछ समय तक महार ज पाण्डु सुखपूर्वक रहे । फिर भीष्म की आज्ञा से वे दिग्विजय के लिए निकले । जेठे भाई धृतराष्ट्र और बड़ेबूढ़ों को प्रणाम करके और दूसरे लोगों से यथोचित बिदा माँग कर, नगर की नारियों के मङ्गलाचरण और ब्राह्मणेां के आशीर्वचन सुनते हुए, उन्होंने यात्रा की। हाथी, घोड़े, रथ और बहुत सी पैदल फौज साथ ली। महावीर पाण्डु ने पहले उन राजों को युद्ध में हराया जिन्होंने उनके राज्य के कितने ही भाग जबरदस्ती ले लिये थे। उन सब भागों को उनसे छीन छीन कर पाण्डु ने फिर अपने राज्य में मिलाया। इसके अनन्तर चारों दिशाओं के बड़े बड़े बलवान् राजों को हरा कर उनके साथ मित्रता स्थापित की और उनसे कर भी लिया। अर्थात् उन राजों से मालगुजारी भी ली और उनको अपना