पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३३७

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३०५ दूसरा खण्ड ] अश्वमेघ यज्ञ धर्मराज की बात सुन कर भीमसेन ने हाथ जोड़ कर कहा : महाराज ! हम लोग मन, वच, कर्म से महादेव जी को प्रसन्न करके वह धन ले आयेंगे। जो भयङ्कर किन्नर इस धन की रक्षा करते हैं वे, महादेव जी के सन्तुष्ट हो जाने पर, हमारे काम में विघ्न न डालेंगे। अर्जुन आदि अन्य भाइयों ने भी भीमसेन की इस बात का अनुमोदन किया। तब सब पाण्डवों ने धन लाने का दृढ़ निश्चय करके शुभ दिन और शुभ नक्षत्र में सेना को तैयार होने की आज्ञा दी। धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सु को उन्होंने राज्य की रक्षा के लिए नियुक्त किया। फिर स्वस्ति-वाचन कराकर अच्छी अच्छी मिठाइयों का भोग रख कर महादेव जी की पूजा की । तदनन्तर धृतराष्ट्र की आज्ञा लेकर वे लोग धन लाने के लिए नगर से निकले, और असंख्य सेना के साथ, रथों की ध्वनि से पृथ्वी को परिपूर्ण करते हुए, आनन्द-पूर्वक हिमालय की तरफ चले । तब अनेक सरोवर, नदी, वन और उपवन पार करके वे लोग उस पहाड़ के पास पहुंचे जिसके भीतर सोने के ढेर के ढेर गड़े पड़े थे । तपोबली पुरोहित धौम्य को आगे करके उनकी आज्ञा से वे उस पर चढ़े और वहाँ डेरे डाल दिये । इस समय धर्मात्मा युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों से कहा : हे द्विजश्रेष्ठ ! यहाँ अधिक दिन रहने का सुभीता नहीं है । इसलिए शीघ्र ही दिन स्थिर करके आप लोग महादेवजी की पूजा कीजिए। __ इस पर उनके हितैषी ब्राह्मण लोग बोले : महाराज ! आज का दिन बहुत उत्तम है। इसलिए आज हम लोग केवल जल पीकर रहेंगे आप भी उपवास करें। उनके कहने के अनुसार पाण्डव लोग उस दिन निराहार रहे और कुशासनों पर लेटकर तथा शास्त्र-सम्बन्धी बातें करके रात बिताई । दूसरे दिन वेदों का रहस्य जाननेवाले धौम्य जब विधि के अनुसार हवन करके महादेवजी की पूजा कर चुके तब धर्मराज युधिष्ठिर वहाँ गये जहाँ धन गड़ा था। वहाँ उन्होंने फल, फूल, मालपुवे, गुलगुले और हलुवे से धन के स्वामी कुबेर की पूजा की। फिर नौकरों को धन खोदने की आज्ञा दी। कुछ ही देर खोदने पर इस जगह से कितने ही बड़े बड़े बर्तन, घड़े और कड़ाह निकले। उनमें सोना भरा हुआ था। राजा युधिष्ठिर हस्तिनापुर से धन रखने के योग्य बहुत से बर्तन और ले जाने के लिए लाखों हाथी, घोड़े, ऊँट, गधे और गाड़ियाँ अपने साथ ले आये थे। सारा धन उन्हीं बर्तनों में भर कर उन्हें गाड़ियों और हाथियों आदि पर लादने के लिए उन्होंने आज्ञा दी। इस तरह यह विपुल सम्पत्ति पाकर और फिर महादेवजी की पूजा करके वे हस्तिनापुर को लौट पड़े । लदे हुए जानवर बोझ के मारे दबे जाते थे; इसलिए दिन भर में बहुत ही थोड़ा चल सकते थे। इस बीच में कृष्ण यज्ञ का समय निकट आया जान और राजा युधिष्टिर का अनुरोध स्मरण करके बलदेव, सुभद्रा, प्रदान, युयुधान, चारुदेष्ण, कृतवर्मा आदि वीरों के साथ हस्तिनापुर आ पहुंचे। वे लोग आकर बैठे ही थे कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तग के एक मरा बालक उत्पन्न हुआ। पुत्र के भूमि पर गिरते ही अन्त:पुर के सब लोग आनन्द मनाने लगे। पर शीघ्र ही वह आनन्द रोने में बदल गया। कृष्ण ने बड़ी घबराहट से युयुत्सु के साथ अन्त:पुर में जाकर देखा कि कुन्ती, द्रौपदी और सुभद्रा आदि उनको बुलाने के लिए जल्दी जल्दी दौड़ी आती हैं। उनके साथ कृष्ण उस घर में गये जहाँ उत्तरा के पुत्र उत्पन्न हुआ था। वहां उन्होंने देखा कि वह घर तरह तरह की मालाओं से सजा फा०३९