पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३३९

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३०७ दूसरा खण्ड ] अश्वमेध यज्ञ हे केशव ! तुम्हारी ही कृपा से हमारा मङ्गल हुआ है। इसलिए इस यज्ञ की दीक्षा तुम्हीं लो। उत्तर में कृष्ण ने कहा :- महाराज ! श्राप बड़े शीलवान् और विनय-सम्पन्न हैं; इसी से आप ऐसा कहते हैं। श्राप हमारे राजा और गुरु हैं; इसलिए आप ही यज्ञ कौजिए। आपका यज्ञ सिद्ध हो जाने पर हम सब लोगों को यज्ञ का फल होगा। आप जो काम करने के लिए कहेंगे हम वही करेंगे। तब युधिष्ठिर ने वेदव्यास से कहा :- हे महषि ! आप यज्ञ का ठीक समय निश्चित करके हमें दीक्षित कीजिए । यह यज्ञ श्राप ही की कृपा से निर्विन समाप्त हो सकेगा। व्यास ने कहा :--राजन् ! चैत्र की पौर्णमासी को तुम्हें यह यक्ष आरम्भ करना होगा। इसलिए अब यज्ञ की सामग्री इकट्ठी करो और घोड़ों की विद्या जाननेवाले सारथियों तथा ब्राह्मणों को यज्ञ के घोड़े की परीक्षा करने की आज्ञा दो । शास्त्र के अनुसार घोड़ा छोड़ा जायगा । वह समुद्र पर्य्यन्त पृथ्वी-मण्डल पर तुम्हारे चमकते हुए चन्द्रमा-रूपी यश का प्रकाश फैला कर लौट आवेगा। महर्षि व्यास की आज्ञा के अनुसार राजा युधिष्ठिर सब तैयारी करने लगे। धीरे धीरे सब सामान इकट्ठा हो जाने पर उन्होंने कहा :-- भगवन् ! यज्ञ की सब सामग्री तैयार है । इसके उत्तर में महर्षि ने कहा :- हम भी तुम्हें यज्ञ में दीक्षित करने के लिए तैयार हैं । कूर्च-आदि और जिन जिन चीजों की जरूरत है उन्हें सोने की बनवाना चाहिए। तुम्हें आज ही शास्त्र के अनुसार घोड़ा खोलना होगा और उसकी रक्षा का उचित प्रबन्ध भी करना होगा। युधिष्ठिर ने कहा :-आप ही बताइए, इस घोड़े की रक्षा कौन अच्छी तरह कर सकेगा। महर्षि ने कहा :-राजन् ! धनुर्धारियों में श्रेष्ठ महावीर अर्जुन ही को यह कठिन काम सौंपना चाहिए । भीमसेन और नकुल बड़े तेजस्वी हैं; इसलिए ये राज्य की रक्षा करें । और सहदेव महमानों की देख-भाल रक्खें। महर्षि व्यास की आज्ञा के अनुसार प्रबन्ध करके युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा :- भाई ! तुम निश्चित समय पर घोड़ा लेकर यात्रा करना । जो राजे तुमसे लड़ने श्रावें उनसे हमारे यज्ञ का हाल कहना और जहाँ तक बने लड़ाई टालने की चेष्टा करना। ___ठीक समय पर पुरोहितों ने युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ के लिए दीक्षित किया। उस समय वे फूलों की माला, मृगछाला, दण्ड और क्षौम वस्त्र धारण करके ऋत्विजों के साथ बैठे और प्रज्वलित अग्नि की तरह शोभा पाने लगे। इसके बाद अर्जुन भी उचित वेश में अग्नि की तरह शोभायमान हुए। यथासमय महात्मा व्यास ने उस काले घोड़े को छोड़ दिया। अर्जुन उसके पीछे चलने को तैयार होकर बोले :- घोड़े ! तुम्हारा मङ्गल हो । तुम निर्विन प्रस्थान करो और शीघ्र ही यहाँ लौट आओ। यह कह कर उन्होंने अंगुश्ताना पहना और गाण्डीव का टङ्कार शब्द किया। फिर बड़ी प्रसन्नता से सफेद घोड़े पर सवार होकर उसके पीछे पीछे चले। इस समय हस्तिनापुर के लड़के, बूढ़े और स्त्रियाँ, सब लोग, अर्जुन और यज्ञ के घोड़े को देखने के लिए वहाँ एकत्र थे। वे सब चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे :-