३२० सचित्र महाभारत [दूसरा खराब लोग नदी का किनारा छोड़ कर कुरुक्षेत्र की ओर चले । वहाँ धृतराष्ट्र ने महर्षि शतयूप से दीक्षा ली और वन में रह कर तपस्या करने के सम्बन्ध में उनसे उपदेश ग्रहण किया। इसके बाद सब लोग छाल और मृगचर्म पहन कर, तथा इन्द्रियों को अपने वश में करके, तपस्या करने लगे। इधर पाण्डव लोग पुत्रहीन धृतराष्ट्र, माता कुन्ती, गान्धारी और महात्मा विदुर के शोक से कातर होकर नगर में बहुत दिन तक न ठहर सके। राज्य का सुख भोगने अथवा वेदाध्ययन करने आदि किसी भी काम में उनका मन न लगा। कभी वृद्ध धृतराष्ट्र के वनवास-क्लेश को सोच कर और कभी अभिमन्यु, कर्ण, या द्रौपदी के पुत्रों के मरने की बात याद करके वे लोग बहुत दुखी होने लगे। पहले व दिन-रात राज-काज किया करते थे । पर अब उनका मन उसमें न लगता था। धीरे धीरे उनका जी ऐसा उचाट हो गया कि किसी के समझाने-बुझाने पर भी वे ध्यान न देने लगे। अधिक शोक के कारण वे संज्ञाहीन मनुष्य की तरह समय काटने लगे । हाँ, केवल उत्तरा के पुत्र परीक्षित को देख कर वे लोग किसी तरह धीरज धारण किये रहते थे। एक दिन सब लोगों ने मिल कर इस सम्बन्ध में बहुत देर तक बातचीत की और विलाप किया । अन्त में यह ठहरा कि वन जाकर गुरुजनों के दर्शन अवश्य करना चाहिए । तब युधिष्ठिर ने सेनानायकों को बुला कर कहा :-- हे योद्धागण ! तुम लोग हाथी. घोड़े, रथ आदि जल्द तैयार करो। हम धृतराष्ट्र से मिलने के लिए वन जायँगे। इसके बाद धर्मराज ने अन्त:पुर में जाकर वहाँ के अधिकारियों से कहा :- तुम लोग सवारी गाड़ी, पालकी, छकड़े आदि बहुत जल्द सजाओ। कारीगर लोग जाकर कुरुक्षेत्र के रास्ते में जगह जगह विश्राम-घर बना रक्खें । खाने-पीने का सामान और रसोइयों को भी वहाँ शीघ्र ही भेजो । खज़ानची भी जाय, जिसमें खर्च की तङ्गी न हो। दूसरे दिन सबेरे स्त्रियों को आगे करके युधिष्ठिर भाइयों के साथ नगर से निकले और थोड़ी देर बाहर ठहरे रहे । जब सेना आदि तैयार हो गई तब उसके बीच में होकर आश्रम की ओर चले । वृतराष्ट्र के दर्शन की इच्छा रखनेवाले कितने ही नगर-निवासी भी तरह तरह की सवारियों पर, अथवा पैदल ही, उनके साथ साथ चले । पर धर्मगज की आज्ञा के अनुसार युयुत्सु और पुरोहित धौम्य धृतराष्ट्र के आश्रम में न जाकर नगर की रक्षा के लिए रह गये। धृतराष्ट्र का आश्रम जब कुछ दूर रह गया तब पाण्डव लोग रथ से उतर पड़े । पुरवासी और साथ आनेवाले अन्य लोग भी अपनी अपनी सवारियों से उतर पड़े। सब लोग विनीत भाव से थोड़ी ही देर पैदल चले होंगे कि हिरनों से परिपूर्ण और केलों से शोभायमान उस आश्रम में जा पहुंचे। जब वहाँ के व्रतधारी तपस्वी अपना कौतूहल निवारण करने के लिए उनके निकट आये तब युधिष्ठिर ने आँसू भर कर पूछा :- हे तपस्वियो ! इस समय कौरव-नाथ हमारे चचा धृतराष्ट्र, कहाँ हैं ? उत्तर में तपस्वियों ने कहा :- महाराज ! इस समय वे यमुना नहाने, फूल तोड़ने और जल लाने के लिए गये हैं। आप यदि इस रास्ते से जायँगे तो उनके दर्शन हो जायेंगे। ____ पाण्डव लोग बताये हुए रास्ते से कुछ ही दूर गये होंगे कि उन्होंने धृतराष्ट्र, गान्धारी, कुन्ती और सञ्जय को दूर से देखा । कुन्ती को देखते ही सहदेव बड़ी तेजी से दौड़े और रोते हुए उनके पैरों
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