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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड एकलव्य की गुरु पर बड़ी श्रद्वा थी। उसने बिना जरा भी साच-विचार किये, और बिना जरा भी दुःख या दीनता दिखाये, अपना दाहिना अँगूठा काट डाला और द्रोणाचार्य से कहा-आचार्य ! लीजिए, गरुदक्षिणा हाज़िर है। इस तरह अँगूठे से हाथ धो बैठन के कारण बाण चलाने में एकलव्य की पहले की सी निपुणता जाती रही। अर्जुन की बराबरी करनेवालों में एकलव्य ही बढ़ कर था। उसकी निपुणता का इस तरह नाश हो जाने से द्रोण के शिष्यों में अर्जुन ही सबसे श्रेष्ठ धनुर्धारी रह गये । धनुर्वेद में उनकी बराबरी करनेवाला कोई न रहा। बाण चलाने की विद्या में वही देख पड़ने लगे । भीम और दुर्योधन ने गदा चलाने में निपुणता प्राप्त की। गदाशिक्षा में वे दोनों बढ़ कर निकले । वे एक दूसरे से सदा चढ़ा-ऊपरी करना चाहत थे । भीम चाहते थे कि मैं दुर्योधन से बढ़ जाऊँ, और दुर्योधन चाहते थे कि मैं भीम से बढ़ जाऊँ । युधिष्ठिर ने रथी होन--रथ पर चढ़ कर युद्ध करने का अच्छा अभ्यास किया। नकुल और सहदेव ने तलवार चलान में सबसे अधिक योग्यता प्राप्त की। अश्वत्थामा सभी तरह की शिक्षा में प्रवीण निकले। _____ एक दिन द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों की परीक्षा लेने का विचार किया। उन्होंने नील रंग की एक बनावटी चिड़िया सामने पड़ की एक ऊँची डाल पर रख दी। अनन्तर सब गजकुमारों को बुला कर वह चिड़िया उन्होंने दिखाई । दिखा कर आपने कहा :-- तुम सब लोग इस निशाने पर बाण चलाने के लिए-इस चिड़िया का बाण से छेदन के लिए तैयार हो जाओ। हम एक एक को निशाना लगाने की आज्ञा देंगे। बाण छोड़ने की आज्ञा पाते ही तुम लोग इस चिड़िया के सिर को बाण से छेद देना। यह कह कर द्रोण ने पहले युधिष्ठिर को बुलाया और निशाने के सामने खड़ा करके उनसे कहा :हे वीर ! पहले हमारे प्रश्न का उत्तर दो। फिर हमारी आज्ञा पाने ही बाण छोड़ना, पहले नहीं। युधिष्ठिर ने धनुष उठाया और उस पर बाण रख निशाने को ताक कर खड़े हुए। तब द्रोण ने पूछा : हे धर्मपुत्र ! तुम इस चिड़िया को देखते हो ? युधिष्ठिर ने कहा :--हों देखता हूँ। फिर द्रोण ने पूछा :क्या तुम इस पेड़ को, हमको और जितने राजकुमार यहाँ खड़े हैं उन सबको भी देखते हो। युधिष्ठिर ने उत्तर दिया :भगवन् ! मैं इस पेड़ को, आपको और खड़े हुए इन राजकुमारों को भी देख रहा हूँ। यह बात द्रोण के असन्तोष का कारण हुई । उन्होंने अप्रसन्न होकर कहा-तुम इस निशान को न छंद सकोगे। यह कह कर युधिष्ठिर को उन्होंने वहाँ से हटा दिया। इसके अनन्तर एक एक करके दुर्योधन आदि को भी प्राचार्य ने निशान के सामने बाण चढ़वा कर खड़ा किया और सबसे वही प्रश्न पूछ । उत्तर भी सबने वही दिये जो युधिष्ठिर ने दिये थे । उनके उत्तरों को सुन कर द्रोणाचार्य को बड़ा खेद हुआ । उन्होंने सबका तिरस्कार करके निशाने के सामने से हट जाने को कहा। किसी को बाण छोड़ने की आज्ञा उन्होंने न दी। __अन्त में द्रोण ने मुस्कग कर अपने प्यारे शिष्य अर्जुन को बुलाया और उन्हें यथास्थान खड़ा करके आप बोले : ___पुत्र ! इस बार तुमको यह निशाना मारना होगा। धनुष पर प्रत्यचा चढ़ाओ और निशाने की तरफ़ बाण तान कर कुछ देर ठहगे। फिर हमारे प्रश्नों का उत्तर देकर आज्ञा पाते ही निशाने पर तीर मारना ।