पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१०६

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I4 1 चतुर्थसमुलस: | जिस २ का विवाह होना योग्य समझे उस २ पुरुष और कन्या का प्रतिविम्ब ) और इतिहास कन्या और वर के हाथ में देखें और कहें कि इसमें जो तुम्हारा है। अभिप्राय हो सो इको विदित कर देना जब उन दोनों का निश्चय परस्पर विवाह रने का होजाय तब उन दोनों का समावर्तन एफही समय में वे जो वे दोनों अध्यापकों के सामने विवाह करना चाहें तो वहांनहीं तो कन्या के माता पिता के. पर में विवाद होना योग्य है जब वे समव हों तब उन अध्यापकों व कन्या के माता पिता आदि भद्रपुर के सामने उन दोनों की आपस में बात चीत शाखाओं कराना और जो कुछ गुप्त व्यवहार पूछ सो भी सभा मे लिखके एक दूसरे के हाथ में देकर प्रश्नोतर कर लेवें जब दोनो का दृढ़ प्रेम विवाह करने में होजाय तब से उनके खान पान का उत्तम प्रबन्ध होना चाहिये कि जिससे उनका शरीर जो पूर्व ब्रह्मचर्य और विद्याध्ययनरूप तपश्चयों और कष्ट से दुर्बल होता है वह चन्द्रमा की कला के समान बढ़ के थोड़े ही दिनो में पुष्ट हो जाय पश्चात् जिस दिन कन्या रजस्वला होकर जब शुद्ध हो तब वेदी और मण्डप रचके अनेक सुगन्ध्यादि व्य और ।द का होम तथा अनेक विद्वान् पुरुष और स्त्रियों का यथायोग्य सस्कार करें । पश्चात् जिस दिन अनुदान देना योग्य समझे उसी दिन ‘सकारविधि’’ पुस्तकस्थ विधि के अनुसार सब कर्म करके ध्य रात्रि वा दश बजे आत्ति प्रसन्नता से सब के सामने पाणिग्रहणपूर्वक विवाह की विधि को पूरा करके एकातसेवन करें । पुरुष बगिंस्थापन और श्री वयिकर्षण की जो विधि है उसी के अनुसार दोनों करें । जहांतक बने वहांतक ब्रह्मचर्य के वीर्यको व्यर्थ न जाने दे क्योंकि उस वीर्य का रज से जो शरीर उत्पन्न होता है वह अपूर्व उत्तम सन्तान होता है । जब वर्यि का गभशय में गिरने का समय हो उस समय भी पुरुष दोनो स्थिर ' और नासिका के सामने तालिका, नेत्र के सामने नेत्र अन् सुधा शरीर और अ त्यन्त प्रसन्नचित्त रहें डिगे नहीं पुरुष अपने शरीर को ढीला छोड़े और स्त्री वी ऊर्यप्राप्ति समय अपान वायु को ऊपर खीचे योनि को ऊपर संकोच कर बीघे का ऊपर आकर्षण कर के गर्भाशय में स्थिति करे ¥ पश्चात् दोनों शुद्ध जल से स्नान करें गर्भस्थिति होने का परिझान विदुषी स्त्री को तो उसी समय होजाता है परन्तु

  • यह बात रहस्य की है इसलिये इसने ही से समग्र बातें समझ लेनी चम

विशेष लियना उचित नहीं ।