पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/११२

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चतुर्थसमुश्वास : ॥ - IAC न हैं। अध्यापन ब्रह्मयज्ञः पियरुश्च तर्पणम् । होमो दैवो बलि`तो नृयज्ञोsतिथिपूजनम्। २।मनु०३७०। स्वाध्यायेनार्चपेट्षीन् होमैदैवान् यथाविधि। पितृन्श्रद्वैश्चन्नन्ौभूतानि बलिकर्मणा ॥३ म॰ ३। ८१॥ ! दो यज्ञ ब्रह्मचर्य में लिख आये वे अन् एक वेदादि शास्त्रों का पढ़ना पढ़ाना ! सन्योपासन योगाभ्यास, दूसरा देवयत विद्वानों का संग सेवा पवित्रता दिय । गुणों का धारण दृश्व विद्या की उन्नति करना है ये दोनों यज्ञ सायं प्रात: करना ! होते हैं । सायसायं गृहपतिों आग्निः प्रात प्रांतः सौम मस्त्र दाता ॥ १ ॥ प्रातः प्रांतगृहपतिनों अःि सायं सायं सों- ? मनसस्य दाता ॥ २ 1 अ० कां० १६ । अ० ७ । मै०३। ४ ॥ तस्मदहोरात्रस्य संयोगे ब्राह्मण: सन्ध्यमुपात । ! उद्यन्तमस्त यातमादित्यमभिध्याय ॥ ३ ॥ पविश्व्ा- ' । हुणे म० ४ : ख० ५ ॥ न तिष्ठति लु यः पूर्वी नोपास्ते यस्तु पश्चिमामू। स शूद्रवद्यबहिष्काः सर्वस्मा द्विजकर्मणः ॥ ॥ मनु० २ से १०३ ॥ जो सन्ध्या २ काल में होम होता है वह हुत द्रव्य प्रातकाल तक वायुशुद्धि द्वारा सुखकारी होता है ॥ १ ॥ जो अग्नि में प्रार २ काल में होम किया जाता है वह २ हुत द्रव्य सायझाल पर्यन्त बायु की शुद्धि द्वारा बल बुद्धि और आरोग्य कारक होता है ॥ २ ॥ इसीलिये दिन और रात्रि के सन्धि में अर्थात् सूर्योदय और शस्त समय में परमेश्वर का ध्यान और अग्निहोत्र अवश्य करना चाहिये ॥ ३ ॥ और आर प्रातःकाल म करे उसकई लोग घ ट्टिो ये दोनों काम सायं न सज्जन के कम से बाहर निकाल देवें अर्थात् से शुद्धवन सम कें AI ४ ! ॥ (प्रश्न ) त्रिकाल सन्ध्या क्यों नहीं करना १ (उचर ) वीन मय में सन्धि नहीं होती प्रकाश कौर ' की कार की