पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/११८

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पानी निदान में हैं। चतुर्थसमुल्लास: । मह होती उनके सब देशों में घूमने और सत्योपदेश करने से पाखण्ड की वृद्धि नहीं होगी और सर्वत्र स्थों को सत्र से सत्य विज्ञान की प्राप्ति होती रहूदी है। और सरगुपमान में एक ही धर्म स्थिर रहता है बिना अतिथियों के सन्देहनिवृत्ति नहीं हो सन्दे डेनिवृत्ति के बिना दृढ़ निश्चय भी नहीं होता निश्चय बिना सुख कहां! त्रा मुहूर्ता बुध्येत धर्मार्थों चामुचिन्तपत् । कायक्लेfश्व तन्मूला वेदतत्वाधुंमेव व मनु०४ ६२॥ रात्रि के चौथे प्रहर अथवा 'चार घडी रात से उठे आवश्यक कार्य करके वर्म ' 'प्रौर, शरीर के रो का निदान और परमात्मा का ध्यान करे कभी अधर्म अथ का अचरण न करे क्य।i फेंके: नाश्वरितो लोके सद्यः फलति गौरव । शनैरावर्त्तमानस्लु कत्यूंलानि कृन्तति है ॥ मनु०४ । १७२ ॥ किया आ धर्म निष्फल कभी नहीं होता परन्तु जिस समय अधर्म करता है उसी समय फल भी नहीं होता इसलिये अज्ञानी लोग अधर्म से नहीं डरते तथापि निश्चय जानो कि वह अधर्माचरण धीरे २ तुम्हारे सुख के मूल को काटता चला जाता है। इस क्रम से-- अधर्मेौंधते तावत्तता भद्राणि पश्यति । ततः सपत्नाटजयति समूलस्तु विनश्यति मनु० ४ 1 १७४ अधमत्मा समुण्य धर्म की मर्यादा छोड़ ( जैसा तालाब के बंध को तोड़ जल ! चारों ओर फैल जाता है वैसे ) मिथ्याभाषणकपट, पाखण्ड अथन रक्षा करने वाले वेदों का खण्डन औौर विश्वासघादि क से परये पदार्थों को लेकर प्रथम बढ़ता है पश्चात् धनादि ऐश्वर्य से खान, पान, वस्त्र, आभूषणयान, स्थान, मान, प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है अन्याय से शत्रु ों को भी जीतता है पश्चात शीघ्र नष्ट हो जाता है जैसे जड़ काटा हुआ वृक्ष नष्ट होजाता है वैसे अधर्मी नष्ट होजाता है । सयधमकृतेषु शैोचे वैवारमेसदा । शिष्यांश्व शिष्याह्नर्माण वाग्बा दरसंयतः ॥ मनु० वे 1१७५ ॥ |