पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३५

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सत्यार्थप्रकाश ॥ रस" अर्धान् विवाहिन पनि से उत्पन्न हुअा पुत्र पिता के पदार्थों का स्वामी होता है वैसे ही "क्षेत्रज" अर्थात नियोग से उत्पन्न हुए पुत्र भी मृतपिता के दायभागी होते हैं। अब इस पर स्त्री और पुरुष को ध्यान रखना चाहिये कि वीर्य और रज को | अमूल्य सममें जो कोई इम अमूल्य पदार्थ को परस्त्री, वेश्या वा दुष्ट पुरुषों के

सग में खोते है वे महामूर्य होते हैं क्योंकि किसान वा माली मूर्ख होकर भी

अपने खेत वा बाटिका के विना अन्यत्र बीज नहीं बोते जोकि साधारण वीज और मूर्ख का ऐसा वर्तमान है तोजो सर्वोत्तम मनुष्य शरीररूप वृक्ष के वीज को कुक्षेत्र • में खोता है वह महामूर्ख कहाता है क्योंकि उसका फल उसको नहीं मिलता और “आत्मा वै जायते पुत्र.” यह ब्राह्मण ग्रन्थों का वचन है ।। अङ्गादङ्गात्सम्भवास हृदयादधिजायसे। आत्मा वै पुत्रनामासि स जीव शरदः शतम् ॥ निरु० ३।४॥ हे पुत्र ! तू अङ्ग २ से उत्पन्न हुए वीर्य से और हृदय से उत्पन्न होता है इस- लिये तू मेरा आत्मा है मुझ से पूर्व मत मरे किन्तु नौ वर्ष तक जी। जिससे ऐसे २ महात्मा और महाशयो के मर्गर उत्पन्न होते हैं उसको वेश्यादि दुष्ट क्षेत्र मे बोना वा दुष्ट बीज अच्छे क्षेत्र में वुवाना महापाप का काम है ( प्रश्न ) विवाह क्यों करना ? क्योंकि इससे स्त्री पुरुष को बन्धन में पड़के बहुत संकोच करना और दुख भोगना पड़ता है इसलिये जिसके साथ जिसकी प्रीति हो तबतक वे मिले रहें जब प्रीति छूट जाय तो छोड़ देवें ( उत्तर ) यह पशु पक्षियों का व्यवहार है मनुष्यों का नहीं जो मनुष्यों में विवाह का नियम न रहे नो सव गृहाश्रम के अच्छे २ । व्यवहार नष्ट भ्रष्ट होजाय कोई किसी की मेवा भी न करे और महा व्यभिचार 'बढकर मब रोगी निर्बल और अल्पायु होकर शीत्र २ मर जायें, कोई किसी से ! । भय वा लना न कर, वृद्धावस्था में कोई किमी की मेवा भी नहीं करे और महा- ' व्यभिचार बढकर सब रोगी निर्बल और अल्पाय कर कुलों के कुल नष्ट हो- जाये । कोई किमी के पदार्थों का स्वामी व दायभागी भी न हो सके और न किमी का किमी पदार्थ पर दीर्घकाल मचन्त स्वत्व रहे इत्यादि दोषों के निवारणार्थ विवाह ही होना मर्वथा यो-(प्रश्न ) जब एक विवाह होगा एक पुरुष को एक म्नी और एक बी को एक पुस्प रहेना नत्र ती गर्भवती स्थिर रोगिणी अथवा पृरूप दीपो हो और दोनों की रवावस्था हो, ग्हा न जाय नो फिर क्या करें ?