पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१८०

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पयाथनक्श. !! १६८ अभीप्सितानामां काले युक्त प्रशस्यते ॥ १४ ॥ मनु० ७ ॥ १८४-१६ । १४-१९६। २०३ । २०४ ॥ जब राजा शत्रुओं के साथ युद्ध करने को जावे तब अपने राज्य की रक्षा का प्रबन्ध और यात्रा की सब सामग्री यथाविधि करके सब सेना, यान, वाहन, शना छादि पूर्ण लेकर सर्वत्र दूतीं अर्थात् चारों ओर के समाचारों को देनेवाले पुरुषों को गुप्त स्थापन करके शत्र की ओर युद्ध करने को जवे ॥ १ 21 तीन प्रकार के मार्ग अत् एक स्थल में भूमि ) में दूसरा जल (समुद्र ा नदियों ) में तीसरा आकाश- ! मार्गों को शुद्ध बनाकर भूमिमार्ग में रथ, अश्व, हाथी, जलमें नौका और आकाश । | में विमानदि यानों से जावे और पैदलरथ, हाथी, गोई, शक और अन खान पानादि सामग्री को यथावत् साथ ले बलयुक्त पूर्ण करके किसी निसिस को प्रसिद्ध करके शत्रु के नगर के समीप धीरे २ जावे ॥ २ ॥ जो भीतर से शत्रु से मिला हो । और अपने साथ भी ऊपर से मित्रता रखे गुप्ता से शत्रु को भेद देखे उसके जाने आने में उससे बात करने में अत्यन्त सावधानी रक्ख ककि भीतर शत्र ऊपर मित्र पुरुप को बड़ा शत्रु समझना चाहिये ॥ ६ ॥ सव राजपुरुषों का युद्ध करने की विद्या सिखावे और आप सीखे तथा अन्य प्रजाजनों को सिखावे जो पूर्व शिक्षित योद्धा होते हैं वे ही प्रकार लड लड़ा जानते हैं करे दण्डव्यूह ) अच्छ जब शिक्षा तवा दुड के समान सेना को चढावे (शकट अर्थात् ( बरा३० ) शकट०) जैसा गाड़ी के समान जैसे सुर एक दूसरे के पीछे दौड़ते जाते हैं और कभी २ सब मिलकर क्रूड हो जाते हैं वैसे ( मकर० ) जैसे मगर पानी में चलते हैं वैसे सेना को बनावे ( सूची व्यूह ) जैसे सूई का अभाग सूक्ष्म पश्चात् म्यूल और उससे सूत्र स्थूल होता वैसी शिक्षा से सेना को बनावे, जैसे नीलकण्ठ ) ऊपर नचे झपट मरता हूं प्रकार सेना को बनाकर लड़ाखे ॥ ४ ॥ जिधर भय विदित हो उसी ओर सेना फैलाने, सब सेना के पतियों को चारों ओर रव के ( पद्मशब्यूह ) अर्थात् पद्मशाक , चारों ओर से सेनाओं को रखके मध्य में आप रहै ॥ ५ 1 सेनापति और ध्यक्ष अर्थात माता का देने और सेना के साथ लडने लड़नेवाले वीरों को आटा । दिशाओं में रक्खेजिस छोर से लड़ाई होती हो उसी ओर सब सेनाका पुख रहा। परन्तु मरी प्रोर भी पदा प्रबन्ध रक्खे नहीं तो पीछे बा पाश्र्च से शत्रु की यात