पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१८९

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समुसा: ! ! १७७ के के ही कर दी । क्योंकि तुम्हारी इस कार्य में साक्षी है ॥ ९ ॥ जो साक्षी सत्य बोलता है वह जन्मान्तर में उत्तम जन्म और लोकान्तों में जन्म को प्राप्त होके सुख भो- उत्तम गता है इस जन्म व ' पर जन्म से उत्तम कीर्ति को प्राप्त हो ता है क्योंकि जो यह वाणी है वह वेदों में सत्कार और तिरस्कार का कारण लिखी है । जो सत्य बो लता है वह प्रतिष्ठित और मिथ्यावी निन्दित होता है : १ ॥ सत्य बोलने से साजी पवित्र होता और सत्य ही बोलने से धर्म बढ़ता है इस से सब वर्षों में खा क्षियों को सस्य ही बोलना योग्य है ॥ ११ ॥ आम का साक्षी आत्मा और आत्म की गति आत्मा है इस को जान के हे पुरुष ! तू सब मनुष्यों का उत्तम साक्षी अपने आत्मा का अपमान मत कर अत् सत्यभाषण जो कि तेरे छात्मा मन वाणी मे है वह सत्य और जो इस से विपरीत है वह मियाभाष ण है ॥ १२ है जिस बोलते हुए पुरुष का विद्वान् क्षेत्र अर्थात् शरीर का जाननेहरा आमरा भीतर शला को प्राप्त नहीं होता उस से भिन्न विद्वान लोग किमी को उत्तम पुरुष नहीं जानते 17१३॥ कल्याण की इच्छा करनेहारे पुरुष ! जो तू “में अकेला हू ऐसा आपने आत्मा में जानकर मिथ्या बोलता है सो ठीक नहीं है किन्तु जो दूसरा तेरे हृदय में आ - न्तर्यामीरूप से परमेश्वर पुण्य पाप का देखनेवाला मुनि स्थित है उस परमात्मा से डरकर सदा सत्य बोला कर 7 १४ | । लोभन्मेहान्नयन्त्राकासात् क्राधाक्तयेव व । अज्ञानाद्यालभावाच सायं वितथमुख्यत ॥ १ ॥ एषामन्यतमे स्थाने यः साक्ष्यमन्त वदेत्। तस्य दण्डविशेषांस्तु प्रवक्ष्याम्पनुपूर्देश ॥ २ ॥ लोभासहस्त्रदण्डयस्तु मोहात्ठवेंन्तु साहसम् । भयावह मध्यम दण्डयो मैत्रात्र्व चतुर्राणम् ॥ ३ ॥ 1 कामाशगुण पूर्व क्रोधातु त्रिगुण परम् । अज्ञानाद्छे शते पूर्ण बालियाच्छतसेव तू ॥ ४ ॥ | उपस्थमुदरं जिह्वा हस्तौ पादौ व पचम । चर्चना च क चव धन देहस्त6व च ॥ ५ ॥ - --------------- - - - - - --- पानी का अपना स्थान बनाना