पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

घसमुला: १९ -- -, 4, 25----------


- - पूर्व प्रतिष्ठा वर्तमान और भविष्यत् में और परजन्म में होनेवाली कीर्टीि का नाश करनेहारा है और पर जन्म में भी दुःखदायक होता है इसलिये अधर्मयुक दुण्ड किसी पर न करे : ७ ॥ जो राजा दण्डनीयो को न दुण्ड और अदण्डनीयों को दण्ड ' देता है अर्थात् दण्ड देने योग्य को छोड़ देता और जिसको दण्ड देना न चाहिये । , उसको दण्ड देता है वह जीता हुआ बड़ी निन्दा को और मेरे पीछे बड़े दुःख को प्राप्त होता है इसलिये जो अपराध करे उसको सदा दुण्ड देखे और अनपराधी को दण्ड कभी न देवे ॥ = ॥ प्रथम वाणी का दण्ड अर्थात् उसकी ‘निन्दा’ दूसरा 'धि दण्ड अर्थात् बुझको धिक्कार है तू ने ऐसा बुरा काम क्यों किया तीसरा ' उससे धन लेना" और चौथा ‘बध’’ दण्ड अर्थात् उसको कोड़ा व बँव से । मारना वा शिर काट देना ॥ ९ ॥ येन पेन यथार्केन स्नैनों क्चष्टते । ततदेव हरेदस्य प्रत्यादेशाय पार्थिवः ॥ १ ॥ पिताचार्यः सुहृन्माता भाषयों पुत्र’ पुरोहितः । नादो नाम राज्ञोस्ति यः स्वधर्म न तिष्ठति ॥ २ ॥ काघोपण भयंद्दण्ड्या यत्रन्यप्रताँ जन’ । तत्र राजा भवेढण्ड्यः सहमिति धारणा ॥ ३ ॥ अष्टापाग्रन्तु शूद्रस्य स्तेये भवति किल्विषम् । षोड़शंव लु वैश्यस्य द्वार्निश क्षत्रियस्य च ॥ ४ ॥ ब्राह्माणस्य चतुष्टिः पूर्ण वापि शर्त भचेत् । द्विगुण वा चतुष्टिस्तोषगुणविद्धि स: ॥ ५ ॥ एन्द्र स्थानभिग्रेप्सुदेश्चक्षयमययन् । नोपेइंत क्षणऋषि राजा साहसिक नरम् ॥ ६ ॥ वाग्दुष्टात्तस्करावैव दण्डनव च हिंसतः । साहसस्य नरः कर्ता विशेयः पापकृतः ॥ ७ ॥ -- - -- - - मन्नान न्य) -