पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२३९

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अष्मसमु: 1! नय घोड़ा नहीं और घो गाय नहीं इसलिये सब को अभावरूप मानना चाहिये, ( उतर ) सब पदार्थों मे इतरेतराtभाव का योग हो परन्तु 56 गवि गौरवेवोभाबरूपो वर्तत एव' गाय में गाय और घोड़े में घोड़े का भाव ही है अभाव कभी नहीं हो सकता जो पदार्थों का भाव न हो तो इततरभाव भी किस में कहा जावे : ८ ॥ नववां नस्तिक कद व है कि स्वभाव से जगत् की उत्पत्ति होती है जैसे पानी अन्न एकत्र हो सड़ने से कृमि उत्पन्न होते हैं और बीज पृथिवी जल के मिलने से घास वृक्षादि और पापाणदि उत्पन्न होते है जैसे समुद्र वायु के योग से तर और सरद्दों स समुदफन, हल्दी, चूना र लू का रस मिलान बन जाती है वैसे सब जगत् तत्वों के स्वभाव गु से उत्पन्न हुआ है इस का बनाने वाला कोई भी नहीं। ( उत्तर ) जो स्वभाव से जगत् की उपाते व तां विनाश कभ न हां और जो विनाश भी स्वभाव से मानो तो उत्पत्ति न होगी और जो दोनों स्खभाष युग। पत् द्रव्यो में मानोगे तो उत्पत्ति और विनाश की व्यवस्था कभी न हो सकेगी और जो निमित्त के होने से उत्पत्ति और नाश मानोगे तो निमित्त उत्पन्न और विनष्ट ! होने वाले द्रव्यों से पृथक् मानना पड़ेगा जो स्वभाव ही से उत्पत्ति और विनाश होता तो समय ही में उत्पत्ति और विनाश का होना सम्भव नहीं जो स्वभाव से उत्पन्न होता हो तो इस भूगोल के निकट से दूसरा भूगोल चन्द्र सूर्य आदि उत्पन्न क्यों नहीं होते है और जिस २ के योग से जो २ उपन्न होता है वह २ ईश्वर के | उत्पन्न किये हुए बीज, अन्न, जलादि के संयोग से घास, वृक्ष औरकृमि आदि उत्पन्न होते हैं विना उनके नहीं जैसे हल्दी चूना और नींबू का रस दूर २ देश से आ । कर नई सिलते के मिलाने से मिलते हैं उसमें आप किसी भी यथायोग्य मिलाने से रोरी होती है अधिक न्यून वा अन्यथा करने से रोरी नहीं होती वैसे ही प्रकृति पर? माणुओं को ज्ञान और युक्ति के परमेश्वर के मिछाये बिना जड़ पदार्थ स्वयं कुछ भी ? कार्यसिद्धि के लिये विशेष पदार्थ नहीं बन सकते इसलिये स्वभा वादि से सष्टि नहीं होती किन्तु परमेश्वर की रचना से होता है ।९ ॥ ( प्रश्न) इस जगत् का कतों न था न और न होगा किन्तु अनादि से है काल यहू जैना का वैसा बना है न कभी इस की उत्पत्ति हुई न कभी विनाश होगा1 उत्तर) विना भी (क हा क कfx f किया ? वो क्रियाजन्य पदार्थ नहीं बन सकता जिन पृथिवी आदि पदार्थों में संयोग विशेष ! ये रचना दीखती है वे अनादि कभी नही हो सकते और जो संयोग से बनता है। यह योग के र्च नहीं होता और वियोग के अन्त में नहीं रहा जो तुम इस A में